For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

दिल-दिमाग तक पहुंच रहे हैं प्लास्टिक कण

07:54 AM Jun 21, 2024 IST
दिल दिमाग तक पहुंच रहे हैं प्लास्टिक कण
Advertisement

Advertisement

मुकुल व्यास
पृथ्वी पर शायद ही कोई ऐसी जगह बची है जहां माइक्रोप्लास्टिक नहीं पहुंचा हो। हमारे पर्यावरण को दूषित करने के पश्चात प्लास्टिक के अत्यंत सूक्ष्म कण अब मानव अंगों में भी दाखिल हो चुके हैं। मस्तिष्क और हृदय में माइक्रोप्लास्टिक पहुंच चुका है। प्लेसेंटा (नाल) और मां के दूध में भी प्लास्टिक के कण पाए गए हैं। अपनी व्यापक उपस्थिति और संभावित स्वास्थ्य प्रभावों के कारण माइक्रोप्लास्टिक नई चिंताओं को जन्म दे रहा है। इस साल की शुरुआत में एक बड़े अध्ययन में हृदय की अवरुद्ध धमनियों में जमा वसा के 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सों में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए थे। यह माइक्रोप्लास्टिक और मानव स्वास्थ्य पर उसके प्रभाव के बीच संबंध स्थापित करने वाला अपनी तरह का पहला डेटा था। अब चीन के शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में हृदय और मस्तिष्क की धमनियों तथा निचले पैरों की नसों से शल्य चिकित्सा द्वारा निकाले गए रक्त के थक्कों में माइक्रोप्लास्टिक पाए जाने की जानकारी दी है।
ताजा चीनी अध्ययन में 30 रोगियों को शामिल किया गया जबकि मार्च में प्रकाशित इतालवी अध्ययन में 34 महीनों तक 257 रोगियों का अनुसरण किया गया था। इतालवी विज्ञानियों की नेतृत्व वाली टीम ने पता लगाया था कि धमनियों की जमावट अथवा प्लेक में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी लोगों में दिल के दौरे या स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ाती है। अब चीनी टीम ने भी रक्त के थक्कों में माइक्रोप्लास्टिक के स्तर और बीमारी की गंभीरता के बीच संभावित संबंध को रेखांकित किया है। अध्ययन में शामिल 30 रोगियों को स्ट्रोक, दिल का दौरा या डीप वेन थ्रोम्बोसिस का अनुभव होने के बाद रक्त के थक्कों को हटाने के लिए सर्जरी करानी पड़ी थी। डीप वेन थ्रोम्बोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें पैरों की गहरी नसों में रक्त के थक्के बनते हैं।
अध्ययन में सम्मिलित औसतन 65 वर्ष की आयु के रोगियों में उच्च रक्तचाप या डायबीटिज जैसी विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं थी और उनकी जीवनशैली में धूम्रपान और शराब का सेवन शामिल था। वे प्रतिदिन प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग करते थे। रक्त के 30 थक्कों का अध्ययन किया गया। इनमें से 24 में रासायनिक विश्लेषण तकनीकों का उपयोग करके विभिन्न आकारों के माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाया गया। परीक्षण में उसी प्रकार के प्लास्टिक की पहचान की गई जो इतालवी अध्ययन में पाए गए थे। ये प्लास्टिक हैं पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) और पॉलीइथिलीन (पीई)। यह आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि पीवीसी का अक्सर निर्माण में उपयोग किया जाता है। ये दो सबसे अधिक उत्पादित प्लास्टिक हैं।
नए अध्ययन में थक्कों में ‘पॉलियामाइड 66’ का भी पता चला, जो कपड़े और वस्त्रों में इस्तेमाल होने वाला एक आम प्लास्टिक है। अध्ययन में पहचाने गए 15 प्रकारों में से, पीई सबसे आम प्लास्टिक था। विश्लेषित कणों में इसका हिस्सा 54 प्रतिशत था। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जिन लोगों के रक्त के थक्कों में माइक्रोप्लास्टिक का स्तर अधिक था, उनमें डी-डिमर का स्तर भी उन रोगियों की तुलना में अधिक था,जिनके रक्त थक्कों में माइक्रोप्लास्टिक नहीं पाया गया था। डी-डिमर प्रोटीन का एक टुकड़ा है जो रक्त के थक्कों के टूटने पर निकलता है। यह सामान्य रूप से रक्त प्लाज्मा में मौजूद नहीं होता है। इसलिए रक्त परीक्षण में डी-डिमर का उच्च स्तर रक्त के थक्कों की उपस्थिति का संकेत दे सकता है।
शोधकर्ताओं को संदेह है कि माइक्रोप्लास्टिक रक्त में जमा होकर थक्के को बदतर बना सकता है। मानव स्वास्थ्य के लिए माइक्रोप्लास्टिक नुकसानदेह है। लेकिन इसकी जांच के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। चीनी विज्ञानी टिंगटिंग वांग और उनके सहयोगियों ने अपने पेपर में लिखा है कि उनके निष्कर्ष बताते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक धमनियों और नसों के स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा जोखिम कारक हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि पर्यावरण और रोजमर्रा के उत्पादों में माइक्रोप्लास्टिक की सर्वव्यापकता के कारण मानव का माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आना अपरिहार्य है। अतः दुनिया को प्लास्टिक के उपयोग पर अंकुश लगाना पड़ेगा।
इस बीच, अमेरिका के न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए शोध में कुत्तों और मनुष्यों, दोनों से लिए गए अंडकोष के ऊतक के नमूनों की जांच की गई। शोधकर्ताओं ने प्रत्येक नमूने में माइक्रोप्लास्टिक पाया, जिसकी प्रचुरता कुत्तों की तुलना में मनुष्यों में लगभग तीन गुना अधिक थी। टीम ने कुत्तों में ऊतक के प्रति ग्राम औसतन 122.63 माइक्रोग्राम माइक्रोप्लास्टिक पाया। मनुष्यों में यह मात्रा प्रति ग्राम 329.44 माइक्रोग्राम थी।
यह अध्ययन हमें यह याद दिलाने के अलावा कि प्लास्टिक प्रदूषण हमारे शरीर के हर हिस्से में कैसे प्रवेश कर रहा है, एक चिंताजनक सवाल उठाता है कि क्या प्लास्टिक के सूक्ष्म टुकड़े पुरुष प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित कर सकते हैं? न्यू मैक्सिको विश्वविद्यालय के पर्यावरण स्वास्थ्य वैज्ञानिक ज़ियाओज़ोंग यू कहते हैं, शुरुआत में मुझे संदेह था कि माइक्रोप्लास्टिक प्रजनन प्रणाली में प्रवेश कर सकता है। जब मुझे पहली बार कुत्तों के लिए परिणाम मिले तो मैं हैरान रह गया। जब मुझे मनुष्यों के लिए परिणाम मिले तो मैं और भी हैरान रह गया।
पहचाने गए 12 अलग-अलग प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक में से, शोधकर्ताओं को कुत्तों और मनुष्यों दोनों में पॉलीइथिलीन (पीई) प्लास्टिक सबसे ज्यादा मिला जिसका इस्तेमाल प्लास्टिक बैग और प्लास्टिक की बोतलों के निर्माण में होता है। हमारी प्लास्टिक प्रदूषण समस्या में पीई का प्रमुख योगदान है। मानव ऊतक में शुक्राणुओं की संख्या के लिए परीक्षण नहीं किया जा सका लेकिन शोधकर्ताओं ने कुत्तों के नमूनों में ऐसा किया। उन्होंने पाया कि पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) प्लास्टिक का उच्च स्तर जानवरों में शुक्राणुओं की कम संख्या से संबंधित है। पीवीसी का व्यापक रूप से कई औद्योगिक और घरेलू उत्पादों में उपयोग किया जाता है, इसलिए चिंता यह है कि प्लास्टिक दुनिया भर में शुक्राणुओं की संख्या में कमी लाने में नकारात्मक भूमिका निभा सकता है। शुक्राणुओं की कमी को पहले से ही भारी धातुओं, कीटनाशकों और कई तरह के रसायनों से जोड़ा गया है। हालांकि, कुत्तों में देखे गए पीवीसी के इन परिणामों को पुरुषों में भी दोहराए जाने की आवश्यकता होगी, ताकि हम समझ सकें कि क्या मनुष्यों में भी ऐसा ही हो रहा है।

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

Advertisement

Advertisement
Advertisement