स्त्री स्वाभिमान की प्रणेता
वर्ष 1897 में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक मनुभाई मेहता के यहां पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई। शिक्षित परिवेश में कन्या बड़ी होती रही। उसने भारत से स्नातक की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चली गई। इंग्लैंड में उनकी मुलाकात सरोजिनी नायडू और राजकुमारी अमृत कौर से हुई। सरोजिनी नायडू ने उन्हें महात्मा गांधी से मिलवाया। महात्मा गांधी से मिलने के बाद तो मानो उस युवती को दिशा ही मिल गई। 1 मई, 1930 को बापू के कहने पर उन्होंने देश सेविका संघ की कमान संभाली और महिलाओं को साथ लेकर विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों को बंद कराने के लिए सत्याग्रह आंदोलन किया। उन्हें बॉम्बे कांग्रेस कमेटी का प्रमुख बना दिया गया। उस युवती ने बॉम्बे में अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि उन्हें ‘डिक्टेटर ऑफ बॉम्बे’ के नाम से पुकारा जाने लगा। उनका कहना था कि देश की हर महिला को समान हक मिलना चाहिए। विद्यार्थी अपनी पुस्तक में ‘सभी मनुष्य एक समान हैं और जन्म से स्वतंत्र हैं’ पढ़ते हैं। लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्टिकल में इस वाक्य में पहले मनुष्य की जगह पुरुष लिखा हुआ था। युवती ने इस जेंडर मुद्दे को उठाया और उनके प्रयासों से इसे पुरुष की जगह मनुष्य किया गया। ये हंसा मेहता थीं। इन्होंने न केवल स्वाधीनता संग्राम में अपना अमूल्य योगदान दिया बल्कि महिलाओं के अंदर आत्मविश्वास, शिक्षा एवं आत्मनिर्भरता की अलख भी जगाई।
प्रस्तुति : रेनू सैनी