अर्थव्यवस्था में गुलाबी परिदृश्य की उम्मीद
सतीश सिंह
मौजूदा समय में अमेरिका सहित लगभग तमाम विकसित देशों के शेयर बाजार में बिकवाली का दौर जारी है। उतार-चढ़ाव के साथ-साथ शेयर बाजार गोते भी लगा रहा है। कोरोना महामारी, भू-राजनीतिक संकट, रूस-यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की ऊंची कीमत की वजह से विकसित देशों में शेयर बाजार की हालत खस्ता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में नरमी है। कुछ देशों में मंदी के आसार हैं।
इसके ठीक उलट भारतीय शेयर बाजार में विगत कुछ महीनों से उछाल की स्थिति बनी हुई है। 4 जुलाई को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का सेंसेक्स 274 अंकों की बढ़त के साथ 65,479 पर बंद हुआ। अपने शुरुआती कारोबार में बीएसई 381.55 अंकों की बढ़ोतरी के साथ 65,586.60 अंकों के स्तर पर पहुंच गया। साल के अंत तक सेंसेक्स 70,000 के स्तर पर पहुंच सकता है।
21 जून को नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) या निफ्टी अपने उच्चतम स्तर 18,887 तक भले ही पहुंच नहीं सका, लेकिन यह अब तक के उच्चतम स्तर 18,640 के आसपास रहा। फिर, 28 जून को यह 19,000 के स्तर को पार कर गया। चार जुलाई को यह 90.95 अंकों की बढ़ोतरी के साथ 19,413.50 अंकों पर पहुंच गया। जानकार बताते हैं निफ्टी इस साल के अंत तक 21,000 के स्तर पर पहुंच सकता है। शेयर बाजार में लगातार उछाल से पिछले 3 महीनों में शेयर बाजार के निवेशकों की संपत्ति में 40 लाख करोड़ रुपये का इजाफा हुआ है।
शेयर बाजार में उछाल का कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) द्वारा ज्यादा निवेश करना है। इसमें अमेरिका और यूरोप के निवेशकों की संख्या अधिक है। जून महीने में विदेशी निवेशकों ने भारत में 47 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया था।
विदेशी निवेशकों द्वारा भारत के बाजार में निवेश करने से चीन की परेशानी बढ़ रही है, क्योंकि चीन का बाजार कम निवेश होने से ठंडा पड़ता जा रहा है। विदेशी निवेशक चीन के बाजार से लगातार पैसा निकाल रहे हैं, जिसका कारण चीन का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों का नरम एवं निर्माण एवं विनिर्माण क्षेत्र का सुस्त रहना है। इसके कारण चीन की अर्थव्यवस्था पहले से कुछ कमजोर हो गई है। चीन में जनवरी-फरवरी महीने में विदेशी निवेशकों ने अच्छा-खासा निवेश किया था, लेकिन बाद के महीनों में निवेशकों ने 34 हजार करोड़ रुपये से अधिक राशि निकाल ली।
अभी विदेशी निवेशक चीन की जगह भारत में निवेश करना बेहतर मान रहे हैं, क्योंकि फिलहाल, भारत की अर्थव्यवस्था चीन से अधिक मजबूत है। फिलवक्त, भारत में निवेश करने के लिए अनुकूल माहौल है। विदेशी निवेशक तो इसका फायदा उठा ही रहे हैं, घरेलू निवेशक भी इसका फायदा उठा सकते हैं। वर्ष 2025 तक अर्थव्यवस्था के 3 ट्रिलियन से 5 ट्रिलियन होने की बात कही जा रही है। एचएसबीसी की हालिया रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था के 5 से 10 सालों में 7 ट्रिलियन होने की बात कही गई है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज रिकवरी का दौर जारी है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मुसलसल सुधार आ रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही में जीडीपी के 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था, लेकिन यह 6.1 प्रतिशत रही। वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में बेहतरी आने से पूरे वित्त वर्ष की वृद्धि दर में भी सुधार दर्ज किया गया है। पहले वित्त वर्ष 2022-23 में एमपीसी ने जीडीपी के 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था, जो वास्तविकता में 7.2 प्रतिशत रही।
दरअसल, डिजिटलाइजेशन हो जाने के कारण शेयर ब्रोकरों की जरूरत नहीं होती है। कोई भी निवेशक खुद से स्मार्टफोन के जरिये शेयरों की खरीद-बिक्री कर सकता है। भारत में बीएसई और एनएसई या निफ्टी नाम के दो प्रमुख शेयर बाजार हैं। शेयर बाजार में बांड, म्यूचुअल फंड और डेरिवेटिव भी खरीदे-बेचे जाते हैं।
आमतौर पर ज्यादा प्रतिफल मिलने की आस में घरेलू-विदेशी निवेशक शेयर के रूप में कंपनियों में निवेश करते हैं, लेकिन अर्थतंत्र की समझ न होने या फिर कंपनियों के वित्तीय परिणाम का सही विश्लेषण नहीं करने या फिर आर्थिक, राजनीतिक कारणों का शेयर बाजार पर क्या या कैसा प्रभाव पड़ेगा, की समझ न होने की से निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिये, अगर कोई निवेशक शेयर बाजार में निवेश करना चाहता है तो उसे सतर्क और शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों पर पैनी नजर रखने की जरूरत है।
शेयर की कीमत में उतार-चढ़ाव से निवेशकों को नुकसान के साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। विदेशी निवेशकों द्वारा बिकवाली करने से एफडीआई में कमी आती है। इसके अभाव में देश की विकास दर, रोजगार, आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालांकि, अभी शेयर बाजार में निवेश का अनुकूल माहौल है, जिसका फायदा सभी देशी एवं विदेशी निवेशकों को उठाना चाहिए।