गुलाबी तस्वीर
ऐसे वक्त में जब कोरोना संकट और रूस-यूक्रेन युद्ध से उपजे हालात से वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं उबरने की कोशिश कर रही हैं, भारत का शेयर बाजार कुलांचें भर रहा है। बीते सोमवार को पहली बार सेंसेक्स का पैंसठ हजार के पार होना सुखद ही रहा। निफ्टी ने भी नई ऊंचाई तय की। दरअसल, भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर वैश्विक नियामक वित्तीय संस्थाओं ने हाल में सकारात्मक प्रतिसाद दिया है। निस्संदेह, भारत की अर्थव्यवस्था इस समय तेजी से बढ़ रही है। जिससे विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा बढ़ रहा है। दरअसल, हाल के दिनों में महंगाई की दर में कुछ कमी दर्ज की गई, रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ और कच्चे तेल के दाम में कमी से बाजार को संबल मिला। जिसका असर शेयर बाजार पर भी नजर आया। कहीं न कहीं दुनिया में भी मंदी से उबरने के संकेत नजर आ रहे हैं। यही वजह है कि विदेशी संस्थागत निवेशक घरेलू बाजार में निवेश कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर पिछले दिनों आए आंकड़ों के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था का अधिकांश मापदंडों पर प्रदर्शन उत्साहवर्धक रहा है। जिसका प्रमाण जीएसटी संग्रह में आई तेजी है, जिसमें बारह फीसदी की बढ़ोतरी बतायी जा रही है। वहीं आने वाले दिनों में कृषि क्षेत्र में बेहतर होने की उम्मीद है। इसकी एक वजह यह है कि देश के कई भागों में समय से पहले मानसून की आमद हुई है। पहले आशंका जतायी जा रही थी कि अल नीनो प्रभाव व हालिया चक्रवाती तूफान की वजह से मानसून की गति बाधित हो सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भरपूर मानसून से नई उम्मीदें जगी हैं कि खाद्यान्न उत्पादन उत्साहजनक रहेगा, जिससे निवेशकों में उत्साह पैदा हुआ है। वहीं दूसरी ओर देश में विदेशी पूंजी का प्रवाह बने रहने और घरेलू बाजार में तेजी के चलते रुपये को मजबूती मिली है। जिससे वह डॉलर के मुकाबले कुछ मजबूत हुआ। इन सभी सकारात्मक रुझानों के चलते ही शेयर बाजार झूमता नजर आया।
वहीं हाल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खुलासा किया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं और बीते वित्तीय वर्ष में उनका मुनाफा बढ़कर एक लाख करोड़ से अधिक हो गया। हालांकि, सरकार इस मुनाफे के लिये अपनी नीतियों को श्रेय दे रही है,लेकिन बैंकों को अभी अपेक्षित लक्ष्यों के लिये बहुत कुछ करना बाकी है। खासकर पीएसबी की कार्यशैली सुधारने और उन्हें निजी बैंकों की प्रतिस्पर्धा में मजबूत बनाने की जरूरत है। पीएसबी के मुनाफे का आंकड़ा उत्साहजनक है, लेकिन जरूरत इस बात की भी है कि कार्यशैली में गुणात्मक रूप से सुधार हो। बैंकों का माहौल कर्मचारियों की आकांक्षाओं के अनुरूप बने क्योंकि पिछले दिनों में बैंक कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर गाहे-बगाहे असंतोष जाहिर करते रहे हैं। कहीं न कहीं बैंकों के कर्मचारी निजीकरण की चिंताओं और बेहतर सुविधाओं को लेकर आंदोलित रहे हैं। उनकी चिंताएं बैंकों के विलय से उत्पन्न चुनौतियों को लेकर भी रही हैं। निस्संदेह, बैंक कर्मियों व नियामक तंत्र के बीच बेहतर संवाद से असंतोष दूर होगा। ध्यान देने की बात यह भी कि बैंकों को डूबते ऋणों की समस्या पर अंकुश लगाने के लिये सतर्क व्यवहार अपनाना होगा। बैंकों से जुड़े नीति-नियंताओं को इस बात को गंभीरता से लेना होगा कि घटती श्रमशक्ति के चलते बैंक के अधिकारियों व कर्मचारियों पर दबाव बढ़ा है। तमाम सरकारी योजनाओं की राहत राशि को बैंकों के जरिये लाभार्थियों तक पहुंचाया जाता है। निस्संदेह, इससे राहतकारी योजनाओं में बिचौलियों की भूमिका खत्म हुई है, लेकिन बैंकों पर दबाव बढ़ा है। बड़े पैमाने पर जनधन खातों का खुलना भारतीय लोकतंत्र के सशक्तीकरण की दिशा में बढ़ा कदम है। जाहिर है नई चुनौतियों का मुकाबला बैंकों की कार्य-संस्कृति में बदलाव लाकर ही किया जा सकता है। जिसका प्रभाव कालांतर बैंकों की उत्पादकता पर ही पड़ेगा। निजी बैंकों की प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने के लिये भी यह जरूरी है। यदि सरकार भी डिफॉल्टर के खिलाफ कार्रवाई में सख्ती दिखाये तो बैंकों की बड़ी पूंजी को बट्टे खाते में जाने से बचाया जा सकता है। फिर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मुनाफे में आशातीत वृद्धि की उम्मीद लगायी जा सकती है।