काली कमाई के अंबार
हाल के दिनों में उन खबरों ने आम आदमी को विचलित किया, जब एक कारोबारी राज्यसभा सांसद के यहां आयकर छापे में अरबों रुपये के नोटों का अंबार मिला। खबरें आई कि नोट गिनने वाली मशीनें नोट गिनते-गिनते थककर खराब हो गई। थैलों में नोट न आए तो बोरों में भरा गया। मीडियों में नोटों से भरी अलमारियां हैरान-परेशान करती रही हैं कि कोई कैसे इतनी अकूत संपत्ति जुटा लेता है। हमारी आर्थिक अपराधों पर नजर रखने वाली एजेंसियां क्यों तब खामोश थीं जब संसाधनों की लूट-खसोट जारी थी। सवाल यह भी कि कहीं ऐसे भ्रष्टाचार के मामलों का खुलासा चुनाव प्रक्रिया के आसपास राजनीतिक लाभ के लिये तो नहीं होता? यह भी कि यह खुलासा विपक्षी राजनेताओं व उनके करीबियों के बाबत ही क्यों होता है? क्या सत्तारूढ़ दल समर्थक कारोबारी राजनेताओं की संपन्नता पाक-साफ ही है? साथ ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लोग जब सत्ता की धारा में डुबकी लगा लेते हैं तो क्या वे पाक-साफ हो जाते हैं? बहरहाल, नोटों का अंबार ये तो बता देता है कि राजनीतिक संरक्षण में फल-फूल रहे कारोबारी राजनेता कितनी आसानी से कम समय में अकूत धन-संपदा जुटा लेते हैं? बताते हैं कि कांग्रेस के जरिये सांसद बनने वाले धीरज साहू ने 2018 में राज्यसभा का सदस्य बनने के हलफनामे में अपनी संपत्ति 34 करोड़ के करीब बतायी थी। तो आखिर कैसे महज पांच साल में संपत्ति तीन सौ करोड़ पार कर गई?
बहरहाल, यह घटना बताती है कि कैसे देश की राजनीति दागियों की कमाई के लिये कामधेनु बन गई है। बताते हैं कि आरोपी राज्यसभा सांसद ने दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और हार गया था। फिर राज्यसभा के जरिये संसद पहुंचने की तिकड़में की। जाहिर है, धनबल भी उसका एक जरिया रहा होगा। ऐसा भी नहीं है कि भारी मात्रा में नकदी बरामदगी की यह पहली घटना हो। अतीत में सुखराम प्रकरण सुर्खियों में रहा। पश्चिम बंगाल में एक शिक्षामंत्री की सहयोगी महिला मित्र के यहां से पचास करोड़ की नकदी व अन्य संपत्ति बरामद हुई थी। कहा गया था कि ये राशि शिक्षा भर्ती घोटाले से जुटाई गई थी। अकसर चुनाव के दौरान चुनाव आयोग की सख्ती से कई राजनेताओं के यहां से करोड़ों रुपये की बरामदगी की खबरें आती रहती हैं। राजनेता ही नहीं, कई नौकरशाहों के यहां से भारी मात्रा में नकदी व अचल संपत्ति के कागज बरामद होने की भी खबरें सुनी जाती रही हैं। झारखंड में एक महिला आईएएस अधिकारी के यहां से सत्रह करोड़ की नकदी बरामदगी की खबर भी चर्चा में रही है। ये घटनाएं बताती हैं कि जिन राजनेताओं व नौकरशाहों पर सामाजिक न्याय व गरीबों के कल्याण की जवाबदेही थी, कैसे वे कदाचार का सहारा लेकर अपना घर भरने में लग जाते हैं। इन घटनाक्रमों से यह समझना भी कठिन नहीं है कि कैसे हमारे जनप्रतिनिधि चुने जाने के कुछ समय बाद ही करोड़ों में खेलने लगते हैं। यह भी कि हमारे लोकतंत्र में धनबल व भ्रष्टाचार कितने गहरे तक अपनी पैठ बना चुका है।