अपनी लोकप्रियता, धार्मिकता खोता जा रहा पिहोवा मेला
पिहोवा, 30 मार्च (निस)
पांच दिन तक चलने वाला पिहोवा का प्रसिद्ध चैत्र चतुर्दशी मेला अपनी लोकप्रियता व धार्मिकता खोता जा रहा है। सरकारी उपेक्षा व अधिकारियों व ठेकेदारों की मिलीभगत के कारण यह 5 दिन का मेला मात्र दो दिन (48 घंटे का) बन कर रह गया।
भागाराम, हरिचंद, मामचंद, तरसेम लाल, मोहनलाल, ज्ञानचंद, शिवकुमार सहित अनेक लोगों ने बताया कि किसी समय यह मेला 5 दिन तक चलता था। मेले में सर्कस, तमाशा, नाच-गाने बजाने वालों सहित अनेक प्रकार के तमाशे व झूले आते थे। मेला समाप्ति के बाद भी कई दिनों तक न केवल शहर बल्कि आसपास के गांव से लोग आते थे तथा मेले के झूलों का आनंद लेते थे, परंतु अब यह मेला केवल औपचारिकता ही निभा रहा है।
इस मेले में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू, दिल्ली, चंडीगढ़ सहित अनेक राज्यों से लोग आते हैं तथा अपने मृतक पूर्वजों के निमित्त पिंडदान करके उनकी आत्मिक शांति की कामना करते हैं।
इतना ही नहीं यहां पर आकर वह अपने पूर्वजों के स्वर्ग के रास्ते से अंधकार दूर करने के लिए दीपक जलाते हैं तथा मिट्टी के घोड़े भी बाबा दरगाही शाह के मंदिर में चढ़ाते हैं।
उस दौरान सरकार द्वारा भी उनके लिए व्यापक प्रबंध किए जाते थे। अब प्रबंध तो किए जाते हैं, परंतु उससे ज्यादा मिलीभगत करके लूटखसोट की जाती है। तहबजारी के नाम पर प्रशासन व ठेकेदार मिलकर दुकानदारों से भारी धनराशि वसूलते हैं। पार्किंग के नाम पर मिलीभगत की लूट के कारण यात्रियों ने भी आना कम कर दिया। इतना ही नहीं तीर्थ यात्रियों के लिए लगाए गए भंडारों व वहां खड़े वाहनों से भी पार्किंग फीस वसूली जाती है।
वहीं सुरक्षा के नाम पर लगाए गए कर्मचारी भी 24 घंटे में ही यहां से चले जाते हैं। इन कर्मचारियों की ड्यूटी नवरात्र मेले में पंचकूला लगाई जाती है, जिस कारण यह कर्मचारी भी एक रात के बाद ही अगले रोज चले जाते हैं। कुल मिलाकर पितरों को मोक्ष देने वाला पिहोवा मेला अपनी धार्मिकता व अस्तित्व होता जा रहा है।