मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

कुंठा झेलते पात्रों की टीस के चित्र

07:50 AM Mar 17, 2024 IST
पुस्तक : साक्षी है पीपल लेखक : जोराम यालाम नाबाम प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रा. लि. दिल्ली पृष्ठ : 127 मूल्य : रु. 199.

सुरजीत सिंह

Advertisement

‘साक्षी है पीपल’ कहानी-संग्रह की लेखिका जोराम यालाम नाबाम अरुणाचल प्रदेश से होने के नाते, उन्होंने प्रदेश की आदिवासी संस्कृति, उसके खान-पान और वहां के देहात के जीवन का जीवंत व विलक्षण वर्णन किया है। इस पुस्तक के अतिरिक्त उन्होंने ‘जंगली फूल’ (उपन्यास) ‘गाय-गेका की औरतें’ (संस्मरण) ‘न्यीशी समाज : भाषिक अध्ययन’ (शोध) और ‘तानी कथाएं : अरुणाचल के तानी आदिवासी समाज की विश्व दृष्टि’ (लोक कथा विश्लेषण) आदि कृतियों की रचना भी की है। कहानी-संग्रह में कुल 8 कहानियां संगृहीत की गई हैं। सभी कहानियों में अपने परिवेश में कुंठाओं को झेलते पात्रों के कष्टकर जीवन का अवलोकन मिलता है।
लेखिका की विशिष्टता यह है कि उसने उस समाज के कुत्सित परिवेश को सामने लाने का प्रयत्न किया है जिसमें नारी को महज एक भोग्य वस्तु समझ कर प्रताड़ित ही नहीं किया बल्कि उसकी सहनशीलता की सीमा से बाहर जाकर शोषण किया है। आदिवासी समाज के लोग अशिक्षित होने के नाते अपनी अस्मिता को भूले हुए हैं।
संग्रह की पहली ही कहानी ‘साक्षी है पीपल’ में प्रकृति की गोद में बसे अति पिछड़े परिवेश की कहानी है। जिसमें प्रकृति और वहां के बाशिंदों की दिनचर्या का जीवंत वर्णन देखने को मिलता है। कहानी में आंचलिक परिवेश और आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया गया है।
‘यापी’ कहानी की नायिका यापी एक गरीब माता-पिता की बदकिस्मत बेटी है जिसे समाज के भूखे भेड़ियों ने हवस का शिकार बनाया है। जो अंततः समाज के क्रूर व्यवहार के कारण नदी में कूदकर आत्महत्या कर लेती है। ‘यासो’ कहानी में भी बहुपत्नी प्रथा की व्यथा का दर्द मुखर होकर सामने आता है। नायिका यासो को किसी की चौथी बीवी बनने का दर्द जरूर कचोटता है, परंतु अपना जीवन जीने का ढंग उसने अपनी मर्जी से चुना। ‘यह औरत उस नदी की तरह है, जो दूर से तो लगता है कि बह नहीं रही लेकिन पास जाकर देखो तो तेजी से कल-कल करती बहती नजर आती है।’
लेखिका ने सभी कहानियों में एक जैसी समस्या को उठाया है, जहां पति एक से अधिक पत्नियां रखते हैं। शराब का सेवन करते हैं। निठल्ले हैं। अनपढ़ हैं। उधर पत्नियां भी कुछ कम नहीं। वे भी शराब का सेवन करती हैं और पति बदलती रहती हैं। लेखिका ने कहानियों में जिस ढंग से परिवेश और पात्रों की मानसिकता का चित्रण किया है वह एक अति पिछड़े समाज के लिए आंखें खोलने वाला है। कुल मिलाकर लेखिका अपनी रचना-धर्मिता में सफल रही है।

Advertisement
Advertisement