पीजीआई वैज्ञानिक डॉ. प्रियंका ठाकुर ‘आईवीएस-यंग साइंटिस्ट अवार्ड 2024’ से सम्मानित
विवेक शर्मा/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 19 नवंबर
पीजीआई चंडीगढ़ की शोध वैज्ञानिक डॉ. प्रियंका ठाकुर ने डेंगू पर किए गए अपने अनूठे शोध के लिए भारतीय वायरोलॉजिकल सोसायटी के प्रतिष्ठित 'आईवीएस-यंग साइंटिस्ट अवार्ड 2024' (मेडिकल) से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें ग्वालियर के रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (डीआरडीई) में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ‘विरोकॉन 2024’ में प्रदान किया गया।
नये इलाज की उम्मीद
शोध में 3 एमए जैसे एजेंटों का उपयोग करके इन जीन मार्गों को अवरुद्ध करने का प्रयास किया गया। यह प्रयोग इन-विट्रो परीक्षणों में सफल रहा और गंभीर डेंगू रोगियों में साइटोकाइन तूफान को नियंत्रित करने में मददगार साबित हुआ। यह खोज डेंगू की जटिलताओं के उपचार के लिए नयी दिशा प्रदान करती है। डेंगू जैसी गंभीर महामारी से निपटने के लिए यह शोध एक महत्वपूर्ण कदम है। यह दर्शाता है कि सही दिशा में किया गया शोध नयी चिकित्सा विधियों को जन्म देकर न केवल मरीजों की जिंदगी बचा सकता है, बल्कि भविष्य में ऐसी बीमारियों के प्रभाव को भी कम कर सकता है।
रोग की गंभीरता पर नयी जानकारी
डॉ. ठाकुर का शोध डेंगू की जटिलताओं को समझने पर केंद्रित है। उन्होंने एनएलआरपी-3 इन्फ्लेमसोम और बेक्लिन-1/एलसी3बी ऑटोफैगी जीन मार्करों की भूमिका का अध्ययन किया, जो डेंगू के गंभीर मामलों में साइटोकाइन तूफान और वायरस के प्रसार के पीछे मुख्य कारण माने गए हैं। डेंगू, जो एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है, अधिकांश मामलों में स्वाभाविक रूप से ठीक हो जाता है। लेकिन 5-10% मामलों में यह घातक रूप ले लेता है, जैसे डेंगू रक्तस्रावी बुखार (डीएचएफ) और डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस)। यह सवाल लंबे समय से बना हुआ था कि हल्के डेंगू के ये जटिल रूप क्यों विकसित होते हैं। डॉ. ठाकुर के शोध में यह सामने आया कि गंभीर डेंगू के मामलों में एनएलआरपी-3 इन्फ्लेमसोम और ऑटोफैगी जीन का अत्यधिक सक्रिय होना साइटोकाइन तूफान का कारण बनता है। यह प्रक्रिया मरीजों की स्थिति को गंभीर और कभी-कभी जानलेवा बना देती है।