पीजीआई में चिकित्सा जैव प्रौद्योगिकी कार्यशाला संपन्न, कैंसर, क्षय रोग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में नए अनुसंधानों पर मंथन
चंडीगढ़, 11 मार्च
स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (पीजीआईएमईआर), चंडीगढ़ के प्रायोगिक चिकित्सा एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 10-11 मार्च को चिकित्सा जैव प्रौद्योगिकी पर दो दिवसीय व्याख्यान कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। उन्नत बाल रोग केंद्र के सभागार में आयोजित इस कार्यशाला का उद्देश्य जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे नवीनतम अनुसंधानों को साझा करना और वैज्ञानिक समझ को बढ़ावा देना था।
इस कार्यशाला का आयोजन भारतीय विज्ञान अकादमी, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी और राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के सहयोग से किया गया। कार्यशाला के संयोजक प्रोफेसर प्रदीप चक्रवर्ती रहे, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर बी.आर. मित्तल (उप-अधिष्ठाता) और समन्वयक प्रोफेसर दिब्यज्योति बनर्जी (विभागाध्यक्ष) मौजूद रहे। उद्घाटन सत्र में एक ई-पुस्तिका भी जारी की गई, जिसमें कार्यशाला के मुख्य विषयों और वक्ताओं की प्रमुख बातें सम्मिलित थीं।
महत्वपूर्ण विषयों पर हुए विचार-विमर्श
कार्यशाला में प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने चिकित्सा जैव प्रौद्योगिकी के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार साझा किए। प्रोफेसर प्रदीप चक्रवर्ती ने "जीवाणु संकेत तंत्र में सेरीन/थ्रेओनीन किनास की भूमिका" विषय पर व्याख्यान दिया, जिसमें उन्होंने क्षय रोग जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्युबरक्युलोसिस) में स्फॉस्फोराइलेशन की भूमिका पर प्रकाश डाला। प्रोफेसर दीपशिखा चक्रवर्ती ने जीवाणुओं की क्वोरम संवेदीकरण प्रणाली पर बात की, जो जैव-पर्दा (बायोफिल्म) निर्माण, विषाणुता और प्रतिजैविक प्रतिरोध को प्रभावित करती है।
डॉ. राकेश के. मंडल ने कैंसर के निदान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और यंत्र अधिगम के उपयोग पर चर्चा की, जिसमें त्वचा, स्तन और मस्तिष्क कैंसर की भविष्यवाणी करने वाली तकनीकों पर जोर दिया गया। डॉ. मृदुला नाम्बियार ने गुणसूत्रीय स्थिरता और कोहेसिन संघटकों की भूमिका को समझाया।
कार्यशाला के दूसरे दिन प्रोफेसर अल्का भाटिया ने कैंसर निदान में कोशिकीय आनुवंशिकी के ऐतिहासिक विकास पर चर्चा की, जबकि डॉ. राजश्री भट्टाचार्य ने औषधि अनुसंधान में आणविक गतिकी सिमुलेशन के महत्व को समझाया। डॉ. सागरिका हलदार ने क्षय रोग निदान में हालिया अनुसंधानों पर जानकारी दी, जिसमें कम लागत वाली और शीघ्र परिणाम देने वाली जांच तकनीकों की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
डॉ. शीतल शर्मा ने दीर्घ-अनुक्रम रहित आरएनए की डीएनए क्षति और मरम्मत में भूमिका को समझाया, जो कैंसर उपचार में महत्वपूर्ण है। प्रोफेसर दीपक कुक्कड़ ने क्रिएटिनिन और एल्बुमिन पहचान के लिए सूक्ष्म जैव-संवेदक पर शोध प्रस्तुत किया, जिसमें स्वर्ण नैनाकण, कार्बन डॉट्स और ग्राफीन ऑक्साइड शीट जैसी नवीन तकनीकों पर जोर दिया गया।
नवाचार और युवा वैज्ञानिकों को बढ़ावा
कार्यशाला के दौरान नवाचार विचार प्रस्तुति सत्र का आयोजन किया गया, जहां युवा शोधकर्ताओं ने जैव प्रौद्योगिकी आधारित नवीन विचार प्रस्तुत किए। कार्यशाला का समापन प्रोफेसर दिब्यज्योति बनर्जी के व्याख्यान के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने रंग अभिक्रियाओं पर व्यावहारिक प्रशिक्षण के महत्व को रेखांकित किया।
समापन सत्र में कार्यशाला की सह-समन्वयक डॉ. सागरिका हलदार ने इस व्याख्यान कार्यशाला के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम वैज्ञानिक शोध, नवाचार और सहयोग को प्रोत्साहित करते हैं तथा चिकित्सा जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में युवा वैज्ञानिकों की रुचि को बढ़ाते हैं।
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