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निबंधों में सांस्कृतिक विरासत पर दृष्टि

07:47 AM Dec 10, 2023 IST
निबंधों में सांस्कृतिक विरासत पर दृष्टि
पुस्तक : समर्पयामि रचनाकार : डॉ. गरिमा संजय दुबे प्रकाशक : शिवना प्रकाशन, सीहोर, म.प्र. पृष्ठ : 113 मूल्य : रु. 175.
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राजकिशन नैन

डॉ. गरिमा संजय दुबे ने अपने प्रथम निबंध संकलन ‘समर्पयामि’ के लेखों में अध्यात्म, आस्था और विज्ञान से जुड़े विविध विषयों की जो विवेचना की है उसमें उन्होंने दूरगामी आचार-व्यवहार, प्रकृति-पोषण और मनुष्यता के उत्थान को अहमियत दी है।
पुस्तक में प्रकृति, संस्कृति और भगवत‍् व्यक्तित्व से जुड़े 25 निबंध संगृहीत हैं। निबंध रचना के बारे में डॉ. गरिमा ने बताया, ‘इन ललित निबंधों में मैंने प्रयास किया है कि परंपरा से जो विरासत हमें मिली है, उसे नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाये। निश्चित ही बदलाव का दौर है, किंतु अच्छी चीजें न बदली जायें, उनकी सुगंध, उनका स्वरूप वही रहने दिया जाये। रीति के लिए यही अच्छा है। इन निबंधों की शैली में मैंने नये विषय एवं विचार तो शामिल किये हैं किंतु इनकी आत्मा को अक्षुण्ण रखा है।’
परिस्थिति और परिवेश को दृष्टि में रखकर रचे गये इन निबंधों की सबसे बड़ी विशेषता इनकी वैज्ञानिक प्रस्तुति है। हर निबंध की अपनी सुघड़ता, अपना ढंग और कंठध्वनि है, जिसने इनको प्रवाहमय बनाया है। पहला निबंध ‘क्योंकि कांटों को मुरझाने का खौफ नहीं होता’ है। इस निबंध में इन्होंने सैलाना (जि. रतलाम) के पुराने राजमहल में स्थित कैक्टस गार्डन में खड़ी कंटीली नागफनियों की कलात्मकता को केन्द्र में रखकर एक कल्पना की है कि रंग-बिरंगे कुसुमित फूलों की बहार देखकर जब कंटीले पौधे अपनी मटमैली और गंधविहीन काया का रोना रोने विधाता के दर पर पहुंचे तो सृष्टि के रचयिता ने इनको वह अमूर्त सौंदर्य बख़्श दिया जो आंखों को सर्वाधिक सुहाता है।
‘मिल जा कहीं समय से परे’, ‘चेतना के आवागमन पर घटित वैराग्य’, ‘विसर्जन मांगलिक हो’ और ‘अनलॉक जिंदगी’ आदि निबंध भी रोचक एवं पठनीय हैं। किंतु ‘सावन रूठे गैर नहीं’ और ‘लाल छाता और वह छाता चोर’ जैसे निबंध बोरियत पैदा करते हैं। ‘मादकता पर्सोनिफाइड’ निबंध में आम्रपाली पर टिप्पणी करने से पहले लेखिका को चतुरसेन शास्त्री रचित ‘वैशाली की नगरवधु’ देख लेनी चाहिए थी। शरद, बसंत और वर्षा सरीखी ऋतुओं पर कुछ दर्ज करने से पूर्व व्यापक अवगाहन, अध्ययन और अंतरमंथन करना पड़ता है। पतझड़ की ऋतु शरद को नहीं, शिशिर को कहते हैं। शरद में फूलने वाली घास का नाम कांस है। शरद शुरू में पीताभ पटम्बर धारण करती है, बाद में सुनहरा। बसंत ऋतु बसंत पंचमी से शुरू नहीं होती। बसंत के ठेठ महीने चैत्र एवं वैशाख हैं। महाशिवरात्रि का पर्व बसंत में नहीं बल्कि शिशिर ऋतु में आता है। कन्हैयालाल मुंशी ने ‘बंसी की धुन’ में साफ लिखा है कि ‘महाभारत, हरिवंश और 8वीं सदी में रचित भागवत में राधा का उल्लेख कहीं नहीं मिलता।’ ‘देवकी का बेटा’ में रांगेय राघव ने लिखा है : ‘भागवत में श्रीकृष्ण-गोपियों का वर्णन तो है परन्तु राधा तो क्या किसी का भी नाम नहीं दिया गया है।’ शिव से जुड़ा निबंध और उत्कृष्ट हो सकता था।

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