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हर धर्म के लोग आते हैं यहां मुरादे लेकर

08:02 AM Apr 29, 2024 IST
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बुशरा तबस्सुम
प्राकृतिक सुन्दरता से परिपूर्ण हरिद्वार नगरी, एक पवित्र पावन नगर जहां पूजनीय गंगा है। जिसमें स्नान करने से सभी पाप धुल जाएं। वहीं व्यक्ति के अन्तर्मन को मोह लेती हैं पहाड़ों की दूर तक फैली शृंखला। इसी सुरम्य ज़िले में बसे रुड़की नगर की प्राकृतिक शोभा को चार चांद लगाती है नगर के बीचोंबीच बहती गंग नहर और सुन्दर शांत वातावरण। इसी नहर के किनारे चलते जाए तो इमली के वृक्षों से सुसज्जित पथ आपको पहुंचा देगा कलियर शरीफ जो बरसों से विभिन्न धर्म व जाति के लोगों के लिए विशेष श्रद्धा का केन्द्र रहा है।
यों तो एक विस्तृत क्षेत्र में यहां अनेक दरगाहे हैं जो अपनी-अपनी जगह अपना-अपना मकाम रखती हैं, जैसे मुंह बोली बहन फात्मा के लिए राजा करनवाल को शिकस्त देने वाले और बाद में शहीद हो जाने वाले बाबा फरीद (इमाम साहब) की दरगाह। जो कि स्वयं महान दरवेश हुए है और बुलन्दी पर मुकीम आपकी दरगाह है। लोगों के श्रद्धा का केन्द्र हैं। किल्क अली शाह की दरगाह। और भी कई छोटी-छोटी दरगाहे हैं जो कलियर शरीफ को एक विशेष दर्जा अता करती हैं।
इनमें सबसे प्रमुख सर्वश्रेष्ठ दरगाह मानी जाती है, साबिर पाक की दरगाह दूर-दूर तक मशहूर इस दरगाह से कई किस्से जुड़े हैं। कहा जाता है कि हर किसी की मनोकामना पूर्ण करते हैं साबिर पाक। शायद इसीलिए यहां हर समय अकीदत्तमन्द मेले का सा माहौल बनाए रखते हैं।
परिसर में उपलब्ध साहित्य और कुछ पुराने लोगों से उनके जीवन के विषय में मिली जानकारी के अनुसार अलाउद्दीन साबिर कलियारी अब्दुल कादिर गिलानी के परपोते थे। उनके पिता सैय्यद अब्दुस सलाम अब्दुर रहीम जिलानी थे।
ईरान के कस्बे हरात में आपका जन्म रबीउल अव्वल को 372 हिजरी में हुआ। कहा जाता है कि जन्म से पहले ही आपकी वालदा को घर खुश्ाबूदार बादलों की मौजूदगी, किसी बुजुर्ग हस्ती के जन्म का आभास देती थी। पांच वर्ष की उम्र में आपके वालिद का इंतकाल हो गया, तब बेहतर तालीम के लिए आपकी वालदा ने आपको अपने भाई के पास पाकपटन भेज दिया, वही आपकी तालीम हुई। बारह वर्ष तक मामू के यहां लंगर तक्सीम करते हुए, उनकी इजाजत न होने के कारण कुछ नहीं खाते हुए आपने सब्र की मिसाल कायम की। इसी कारण आपके मामू ने आपको साबिर लक़ब से नवाजा।
साबिर साहब बचपन से ही यादे इलाही में मशगूल रहते थे। वह अपने मामू साबिर फरीद शाह के मुरीद थे। उन्हीं की इजाजत से इस्लाम की तबलीग करते हुए एक शहर से दूसरे शहर होते हुए 15जी उल हज 650 हिजरी कलियर तशरीफ लाए। तब कलियर पहाड़ों के दरम्याना हरेभरे जंगलों से घिरा सुन्दर नगर था। वहीं आपकी बुज़ुर्गी के चर्चे दूर-दूर तक फैल गए और लोग आपके दर्शन के लिए आने लगे। कहते हैं उस समय के शहर इमाम काजी आपसे ईर्ष्या करते थे और तरह-तरह से आपको परेशान करते थे। लम्बे समय तक आपने सब्र किया। लेकिन फिर अपने जलाल से पूरा कलियर तबाह कर दिया। मान्यता है कि स्वयं गूलर के एक वृक्ष की टहनी पकड़ कर 12 वर्षों तक इबादत करते रहे, बारह वर्ष पश्चात अपने मामू द्वारा भेजे गए एक मुरीद के कहने पर उसी पेड़ के गूलर खाए और फिर लोगों से मिलना-जुलना शुरू कर दिया। आपकी बुजुर्गी के चर्चे दूर-दूर तक फैलते रहे और कलियर फिर आबाद हो गया ।
13 रबिउल अव्वल 660 हि. (22 मार्च सन 1261) में आपका इंतकाल हुआ। आपकी वफात से भी कई आश्चर्यजनक किस्से जुड़े हैं। बहरहाल, मुरीद शम्स द्वारा आपकी कब्र उसी गूलर के पास बनाई गई।
आपकी कब्र की ज़ियारत के लिए इंसान के साथ-साथ चरिन्द परिन्द भी आते थे परन्तु 1526 ई. में शहंशाह बाबर के इब्राहिम लोदी पर हमले के कारण देश के सियासी हालात बिगड़ गए फलस्वरूप कलियर वीरान हो गया। मज़ार के निशान मिट गए। एक वीरान से मज़ार पर जानवरों की भीड़ देखकर कुछ हिन्दू भाइयों ने इसे देवी की समाधि समझकर पूजा शुरू कर दी और साबिर पाक ने उनकी भी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कीं तभी से यह मजार मुस्लिमों के साथ-साथ हिन्दुओं के लिए भी विशेष श्रद्धा का केंद्र बन गया।
हज़रत क़ुतुब आलम अब्दुल कुद्दूस गंगोही जो कि एक महान बुज़ुर्ग थे, ने आपकी दरगाह पक्की बनायी। इसमें सुलतान इब्राहिम लोदी ने भी मदद की। शेख़ अब्दुल कुद्दूस गंगोही ही इसके पहले सज्जादे (सरपरस्त) बने, और उसके बाद उनके खानदान से ही एक के बाद एक सज्जाद होते चले गये।
इस्लामी माह शव्वाल में साबिर पाक का उर्स मनाया जाता है उस मौके पर लगा मेला दर्शनीय है। श्रद्धालुओं और मेला देखने वाली की भीड़ कलियर को एक छोटे से भारत में बदल देती है। यहां हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई सब भेदभावों से दूर एक हो जाते हैं। साबिर साहब की दरगाह के परिसर की इस रौनक से थोड़ा दूर उनके मामू इमाम साहब की दरगाह का ज़िक्र किए बिना कलियर का ज़िक्र अधूरा है। मान्यता यह है कि साबिर साहब के दर्शन से पूर्व यहां हाज़िरी लगानी आवश्यक है। चित्र लेखिका

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