प्रदूषकों को दंड
ऐसे वक्त में जब केंद्र सरकार जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने तथा स्वच्छ ऊर्जा को प्रोत्साहन देने के लिये प्रतिबद्ध है, तो देश के विभिन्न संस्थानों व विभागों को भी पहल करनी चाहिए। सरकार के प्रयासों के बीच राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण यानी एनजीटी द्वारा वायु व मिट्टी प्रदूषण फैलाने के लिये पानीपत थर्मल पावर स्टेशन पर 6.93 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाना, तमाम प्रदूषक उद्योगों के लिये सबक है। ट्रिब्यूनल की कार्रवाई कानूनों का उल्लंघन करके पर्यावरण व जन-स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वालों के लिये संदेश है कि लक्ष्मण रेखा पार की तो बख्शे नहीं जाएंगे। पर्यावरण को क्षति पहुंचाने पर भारी मुआवजा देना होगा। दरअसल, इस थर्मल प्लांट से निकलने वाली राख आस-पास के ग्रामीणों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही है। जिससे श्वसन समेत कई तरह के रोग बढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं सड़कों पर प्रदूषण के चलते दृश्यता कम होने से दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है। वहीं दूसरी ओर एनजीटी ने थर्मल प्लांट के प्रबंधकों द्वारा पर्यावरण की क्षतिपूर्ति के लिये पेड़ों को लगाने में की गई खानापूर्ति को आड़े हाथ लिया। ट्रिब्यूनल ने कहा कि आप ने पौधे लगाने का दावा तो किया है लेकिन क्या सुनिश्चित किया है कि उन पौधों में से कितने पेड़ बन पाए। हरित न्यायाधिकरण का कहना था कि पौधरोपण से ज्यादा महत्वपूर्ण पेड़ों की उत्तरजीविता सुनिश्चित करना है। यह उपाय पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले प्रदूषकों के निवारण के आधे-अधूरे प्रयासों को ही उजागर करता है।
निश्चित रूप से एनजीटी की जुर्माना लगाने की यह कार्रवाई प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों को अपने तौर-तरीके बदलने को बाध्य करेगी। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने पिछले एक दशक में तेल व गैस क्षेत्र में राजकोषीय सब्सिडी कम करने की दिशा में सार्थक पहल की है। लेकिन अभी भी स्वच्छ ऊर्जा से बिजली क्षमता का आधा हासिल करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त करने हेतु बड़े प्रयासों की जरूरत है। तभी भारत वर्ष 2030 तक गैर जीवाश्म ईंधन स्रोतों से ऊर्जा हासिल करने के लक्ष्य को हासिल कर पाएगा। जलवायु परिवर्तन सम्मेलन तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता व सब्सिडी कम करने पर बल देते रहे हैं। निस्संदेह, स्वच्छ ऊर्जा के स्थायी विकल्पों में निवेश करने से प्रदूषण से पैदा होने वाली बीमारियों पर अंकुश लग सकेगा। इसके साथ ही हम लक्षित कार्बन उत्सर्जन में भी कटौती कर सकते हैं। जलवायु परिवर्तन का दंश झेल रही दुनिया में जन स्वास्थ्य हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिये जरूरी है कि प्रदूषण के कारकों की नियमित निगरानी हो व कानून के क्रियान्वयन में सख्ती से उद्योगों की जवाबदेही तय की जा सकेगी। जिससे हम प्रकृति के अनमोल संसाधनों हवा, पानी और मिट्टी को जहरीला बनने से रोक पाएंगे। इसमें दो राय नहीं कि पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के आपातकाल से बचने के लिये शून्य सहिष्णुता का दृष्टिकोण नितांत जरूरी है। हाल में पराली जलाने पर जुर्माना दुगना करने की नीति को इसी आलोक में देखना चाहिए। लेकिन साथ ही किसानों को पर्याप्त विकल्प भी उपलब्ध कराए जाने चाहिए।