प्राचीन धरोहरों को अपने गर्भ में समेटे है पिहोवा तीर्थ
सुभाष पौलस्त्य/निस
पिहोवा, 18 नवंबर
सरकार प्राचीन धरोहरों के रखरखाव के प्रति कितनी सजग है। इसका जीता जागता प्रमाण प्राचीन तीर्थ स्थल पिहोवा में बिखरी खंडित मूर्तियां दे रही हैं। प्राचीन तीर्थ स्थल पिहोवा मुगलों व क्रूर शासकों के निशाने पर सदा ही रहा है। इन क्रूर शासको ने यहां के सैकड़ों मन्दिरों को तोड़ कर तबाह किया है। खुदाई के दौरान मिली मूर्तियां इसका प्रमाण दे रही हैं। जहां अनेक मूर्तियां लाहौर के संग्रहालय में पड़ी हैं, वहीं अनेक मूर्तिया आज भी इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं।
पिहोवा के युवा इतिहासकार विनोद पचौली ने बताया कि पुरातत्व विभाग नाममात्र का रह गया है। विभाग केवल 200 साल तक की मुगल कालीन इमारतों की देखभाल तक ही सीमित है। या मिट्टी के ठीकरों को ढूंढ़ने में लगा है। पिहोवा के अनेक कीमती मूर्तियां विभाग के कब्जे में है तथा पिहोवा की अनेक धरोहरें स्थान-स्थान पर बिखरी पड़ी हैं। इन धरोहरों को बचाने वाला कोई नहीं है।
लुप्तप्राय: सरस्वती के तट पर स्थित पृथूदक तीर्थ, पिहोवा का विश्वामित्र का टीला अपने भीतर हजारों साल पहले के पुराने दुर्लभ अवशेष समेटे हुए था। आज भी मूर्तियां यदाकदा मिलती रहती हैं। लगभग 15 वर्ष पूर्व मलबा उठाते हुए अनेक मूर्तियां व चौखट के अवशेष मिले थे। इतिहासकार भी यहां पर प्रतिहार वंश के आराध्य देव यज्ञ वराह का मन्दिर मानते हैं। ईंटों के ढेर व भवनों की निर्माण शैली इसकी गाथा सुना रहे हैं।
डेरा गरीबनाथ में राजा भोज के शिलालेख में भी मन्दिर का वर्णन है। मोहम्मद गौरी ने इस क्षेत्र के सौ से अधिक मन्दिरों को लूटते हुए ध्वस्त कर दिया था। धरोहरों को संभालने के लिए वर्षों से सैकड़ों वर्ष पुरानी खंडित होती जा रही इमारत गुहला रोड स्थित रैस्ट हाउस को संग्रहालय बनाने व इसके भीतर पुरानी मूर्तिया रखने की मांग लोग करते आ रहे हैं, परन्तु सरकार इस ओर कोई भी ध्यान ही नहीं दे रही है।