समय पर घर बना तो ही भुगतान
श्रीगोपाल नारसन
किसी भवन निर्माण की परियोजना में अगर बिल्डर निर्माण शुरू करने या पूरा करने में वादे से अधिक देरी कर रहा है तो संबंधित घर, दुकान या कार्यालय स्थल का खरीदार उपभोक्ता उस बिल्डर का भुगतान रोक सकता है। एक उपभोक्ता आयोग ने एक फैसले में यह बात कही है। उपभोक्ता आयोग ने भवन निर्माण में हुई अनुचित देरी पर खरीदार को भुगतान न करने की राहत दी व बिल्डर से उसे मुआवजा भी दिलवाया। इस मामले में बिल्डर ने फ्लैट खरीदार की बुकिंग रद्द कर दी थी। आयोग ने इसे मनमाना और गैर वाजिब माना। उपभोक्ता आयोग की अध्यक्ष जस्टिस संगीता धींगरा सहगल और सदस्य राजन शर्मा की पीठ ने भवन खरीदार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बिल्डर कंपनी की उन दलीलों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि उपभोक्ता ने समय से बकाया राशि का भुगतान नहीं किया, इसलिए भवन का कब्ज़ा देने में देरी हुई है।
बुकिंग के बावजूद निकली समय सीमा
मामले में गाजियाबाद निवासी अंजू अग्रवाल ने लैंडक्राफ्ट डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड से एक फ्लैट बुक कराया था। लगभग 8 साल पहले 2014 में उन्होंने करीब 37 लाख रुपए में भवन की बुकिंग की थी। एग्रीमेंट के तहत 2017 में उन्हें घर का कब्जा मिलना था। बिल्डर को उसकी डिमांड मुताबिक समय-समय पर राशि का भुगतान किया, लेकिन निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ता देख घर खरीद रही महिला उपभोक्ता ने बकाया रकम का भुगतान बंद कर दिया। बिल्डर ने साल 2019 में उपभोक्ता द्वारा जमा रकम जब्त कर उनकी बुकिंग ही रद्द कर दी। इस पर उपभोक्ता अंजू ने बिल्डर के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज की। आयोग ने अपने फैसले में लैंड क्राफ्ट प्राइवेट लिमिटेड को आदेश दिया की वह उपभोक्ता को 29,39,738 रुपए छह प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करे। साथ ही अगले 8 सितंबर तक अगर सारी रकम उपभोक्ता को वापस नहीं मिली तो बिल्डर को नौ प्रतिशत की दर से ब्याज देना होगा।
मुआवजा और मुकदमा खर्च भी
आयोग ने पीड़ित उपभोक्ता अंजू अग्रवाल को हुई मानसिक परेशानी होने के एवज में दो लाख रुपये का मुआवजा और मुकदमा खर्च के रूप में 50,000 रुपये के भुगतान का भी आदेश दिया है। आयोग ने अपने फैसले में कहा है कि बिल्डर वादे के मुताबिक साल 2017 तक भवन का कब्ज़ा देने की स्थिति में नहीं था, इस कारण उपभोक्ता ने उसका भुगतान बंद किया। ऐसे में उसके भी 2 साल बाद बुकिंग रद्द करना गैर कानूनी है। बता दें, उपभोक्ता आयोग से न्याय प्राप्त करने के लिए उपभोक्ता होना जरूरी है।
शोषण रोकने का प्रावधान
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(47) के तहत मजबूत व्यवस्थाएं उपभोक्ता संरक्षण व उपभोक्ताओं का शोषण रोकने के लिए की गई हैं। जिनमें शामिल हैं- बिक्री के लिए नकली माल का निर्माण या पेशकश करना या सेवा प्रदान करने के लिए भ्रामक प्रथाओं को अपनाना। प्रदान की गई सेवाओं और बेची गई वस्तुओं के लिए उचित कैश मेमो या बिल जारी नहीं करना। दोषपूर्ण वस्तुओं और सेवाओं को वापस लेने से इनकार करना और बिल में निर्धारित समय अवधि के भीतर या बिल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं होने पर 30 दिनों के भीतर वस्तु का मूल्य वापस प्रदान करना। ऐसी स्थिति होने पर उपभोक्ता संबंधित के विरुद्ध शिकायत दर्ज करा सकेगा ,जो धोखाधड़ी वाले व्यापारों को भी रोकने भी सहायक सिद्ध होगा। यदि उपभोक्ता को किसी भी निर्माता, सेवा प्रदाता या विक्रेता के द्वारा दिए गए माल या सेवा से कोई नुकसान उठाना पड़े तब वह उनके विरुद्ध कार्रवाई भी कर सकता है। जिसमें उत्पाद निर्माता को उपभोक्ता अधिनियम की धारा 84 में उत्तरदायी ठहराया जाएगा यदि उत्पाद में विनिर्माण दोष है, डिजाइन में दोषपूर्ण है या वह विनिर्माण विनिर्देशों का पालन नहीं करता है और उसमें उचित उपयोग हेतु पर्याप्त निर्देश नहीं हैं। इसी प्रकार उपभोक्ता अधिनियम की धारा 85 सेवा प्रदाता के विषय में है।
दो साल तक हो सकती है शिकायत
उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराने के लिए वाद हेतुक उत्पन्न होने की तिथि से 2 साल के भीतर शिकायत दर्ज करवा सकता है। यानि उस दिन से 2 साल तक जब प्रथम बार उपभोक्ता को सेवा में कमी या माल में खराबी का पता चला है। देश के 21 राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों की 544 उपभोक्ता अदालतों में अब ई-नोटिस, डाउनलोड लिंक और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई के अलावा एसएमएस और ईमेल के जरिये उपभोक्ताओं को अलर्ट जैसी सुविधाएं भी मिल रही हैं। उम्मीद है कि 2023 उपभोक्ताओं और उपभोक्ता आयोग के लिए शीघ्र न्याय का कारक बन रहा है।
लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।