Pauranik Kathayen: राक्षसी पूतना को क्यों कहा जाता है श्रीकृष्ण की माता, इस रहस्य को जानकर रह जाएंगे दंग
चंडीगढ़, 22 दिसंबर (ट्रिन्यू)
Pauranik Kathayen: भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और कहानियों के बारे में हर कोई जानता है। उन्हीं में से एक है राक्षसी पूतना का वध। क्रूर राजा कंस ने पूतना को कृष्ण को मारने के लिए भेजा था, ताकि वह उन्हें जहरीला स्तन दूध पिला सके। हालांकि, कृष्ण ने जहर के असर के बिना दूध पी लिया और पूतना की मृत्यु हो गई।
राक्षस पूतना को क्यों मिला मां का दर्जा
मगर, क्या आप जानते हैं कि शास्त्रों में राक्षसी पूतना को श्रीकृष्ण की माता का दर्जा भी दिया है। हिंदू धर्म में राक्षसी पूतना को कृष्ण की पालक-माता माना जाता है क्योंकि उसने उन्हें स्तनपान करवाया था। यह जानते हुए भी कि पूतना उन्हें मारना चाहती थी श्रीकृष्ण ने पूतना को माता कहा क्योंकि भले ही उसका इरादा गलत था लेकिन उसने उसे स्तनपान कराकर अपनी मातृ प्रवृत्ति दिखाई।
कथाओं के अनुसार, जब श्री विष्णु वामन के रूप में प्रकट हुए थे तब पूतना राजकुमारी रत्नमाला थीं। वह तुरंत श्रीकृष्ण के वामन अवतार पर दिल हार बैठीं और उसे अपने बेटे के रूप में गले लगाना चाहती थीं और उन्हें स्तनपान कराना चाहती थीं। हालांकि, जब वामन ने राजा महाबली को पाताल भेजकर दंडित किया तो रत्नमाला उनसे क्रोधित हो गई।
तब वामन के लिए उसकी भावनाएं बदल गईं और उसने उसे जहर पिलाकर मारने का मन किया। कथाओं के अनुसार, जब रत्नमाला ने पूतना के रूप में जन्म लिया तब वह अपनी दोनों इच्छाएं पूरी कर सकी। फिर श्रीकृष्ण से मृत्यु प्राप्त करते उन्हें मोक्ष मिल गया।
माता देवकी और माता यशोदा
देवकी कृष्ण की जैविक माँ हैं, और उन्होंने भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि को मथुरा की जेल में उन्हें जन्म दिया। वहीं, यशोदा कृष्ण की पालक-माता हैं और वे गोकुलम के प्रमुख नंद की पत्नी हैं।
माता रोहिणी
रोहिणी कृष्ण के पिता वासुदेव की पहली पत्नी हैं और वह बलराम, सुभद्रा और एकंगा की मां हैं। इस हिसाब से वह श्रीकृष्ण की सौतली मां हुई।
गुरुमाता
शास्त्रों के अनुसार, श्रीकृष्ण जी सांदीपनि मुनि के आश्रम में अपनी शिक्षा प्राप्त की थी इसलिए श्रीकृष्ण सांदीपनि मुनि की पत्नी व गुरुमाता को भी अपनी मां की तरह ही मानते थे। कथाओं के अनुसार, शंखासुर नामक राक्षस ने उनके पुत्र को कैद कर रखा था। तब गुरुमाता ने श्रीकृष्ण से गुरु दक्षिणा के रूप में अपना पुत्र मांगा था।
गुरुमाता की आज्ञा मानकर श्रीकृष्ण ने राक्षस का वध कर उनके पुत्र को आजाद करवाया। तब गुरुमाता ने उन्हें वरदान दिया था कि वह अपनी मां से कभी दूर नहीं होंगे इसलिए कृष्ण जी के जीवित रहने तक उनकी मां देवकी व यशोधा भी जिंदा रही थीं।