Pauranik Kathayen: ब्रह्माजी को क्यों करना पड़ा धन की देवी मां लक्ष्मी का स्वयंवर?
चंडीगढ़, 11 दिसंबर (ट्रिन्यू)
Pauranik Kathayen: हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी को धन और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है। पौराणिक कथाओं की मानें तो देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। मगर, कथाओं में माता लक्ष्मी के स्वयंवर की कहानी अत्यंत रोचक और महत्वपूर्ण है।
विष्णु पुराण के अनुसार, देवराज इन्द्र एक बार बैकुंठ धाम जा रहे थे, तभी उन्हें ऋषि दुर्वासा मिल गए। उन्होंने देवराज इन्द्र को फूलों की एक माला दी लेकिन मद और वैभव में डूबे इन्द्र ने उसे अपने हाथी ऐरावत के गले में डाल दिया। ऐरावत ने उसे झटकर जमीन पर गिरा दिया, जिससे ऋषि दुर्वासा नाराज हो गए। तब ऋषि दुर्वासा ने इसे अपना व माता लक्ष्मी का अपमान मानते हुए इंद्र को श्रीहीन यानी लक्ष्मीविहीन होने का श्राप दे दिया।
माता लक्ष्मी की उत्पत्ति का कहानी
ऋषि दुर्वासा के दिए श्राप के कारण लक्ष्मी स्वरूप माता अष्टलक्ष्मी क्षीर सागर में विलुप्त हो गई थी। इसके बाद देवता भगवान विष्णु के पास गए। उन्होंने देवताओं को समुद्र मंथन का सुझाव दिया, जिसके बाद देवताओं व असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ। इस मंथन से 14 रत्नों के साथ माता लक्ष्मी प्रकट हुई थी।
कमल के फूल पर विराजमान , हाथों में कमल पकड़े माता लक्ष्मी के सौंदर्य और आभा ने हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया। असुर भी देवी की सुंदरता देख मोहित हो गए थे। तब भगवान ब्रह्मा ने देवी लक्ष्मी के स्वयंवर का आयोजन किया था, ताकि असुरों और देवताओं को शांत किया जा सके।
ब्रह्मा जी ने सभी भावी वरों को निमंत्रण भेजा, जिससे दोनों पक्षों को विश्वास हो गया था कि उनके अलावा कोई और दावेदार नहीं हो सकता। स्वयंवर के दिन असुरों और देवताओं को उम्मीद थी कि माता लक्ष्मी उन्हें चुनेंगी। मगर तब भगवान विष्णु भी भावी दूल्हों में एक के रूप में स्वयंवर में शामिल हुए और माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को वरमाला पहनाई। कहा जाता है कि लक्ष्मी गृहस्थों की देवी हैं। वह उन्हीं घर में निवास करती है, जो परिवार और समाज को महत्व देते हैं।