Pauranik Kathayen : श्रीकृष्ण नहीं... ऋषि दुर्वासा के वरदान ने की थी द्रौपदी की चीरहरण से रक्षा
चंडीगढ़, 21 जनवरी (ट्रिन्यू)
Pauranik Kathayen : कौरवों और पांडवों के बीच हुए महाभारत युद्ध के बारे में भला कौन नहीं जानता। कौरवों की भाइयों के प्रति ईर्ष्या, धन-संपत्ति का लालच और मानसिक भटकाव उनके अंत का कारण बना। अपने घमंड और पांडवों से अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए दुःशासन ने भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण करवाया था।
महाभारत के अनुसार, द्रौपदी ने सबसे मदद की गुहार लगाई। जब कोई आगे नहीं आया तो उन्होंने श्रीकृष्ण को आवाज दी। तब श्रीकृष्ण ने स्वयं प्रकट होकर द्रौपदी के सम्मान की रक्षा की थी। वहीं, इस घटना से जुड़ी एक और कहानी का उल्लेख मिलता है। श्री कृष्ण नहीं बल्कि ऋषि दुर्वासा के एक वरदान ने द्रौपदी का चीरहरण होने से बचाया था।
अपने क्रोध के लिए मशहूर ऋषि दुर्वासा एक बार नदी में स्नान कर रहे थे। उनके वस्त्र पानी में बह गए। तभी द्रौपदी भी अपनी सहेलियों के साथ नदी के किनारे आई थी। तभी ऋषि दुर्वासा के कपड़े द्रौपदी को मिल गए। उन्होंने सोचा कि इसके कारण ऋषि को शर्मिंदगी ना सहनी पड़ी इसलिए कारण द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर ऋषि की ओर बहा दिया।
ऋषि दुर्वासा ने देखा कि उनके हाथ द्रौपदी का वस्त्र लगा तो उन्होंने अंर्तध्यान से देखा कि यह किस नीयत से भेजे गए हैं। तब उन्हें द्रौपदी की अच्छी मंशा का पता चला तो उन्होंने उसे वरदान दिया कि यह वस्त्रखंड बढ़कर एक दिन उसकी लज्जा को बचाएगा। पांडवों ने द्रौपदी को दांव पर लगाए जाने के बाद हार दिया था। तब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण किया।
द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का आह्वान किया तब दुर्वासा से मिला वरदान उनके काम आया और उनकी साड़ी इतनी लंबी होती गई कि उसे खींचते-खींचते दु:शासन भरी सभा में बेहोश हो गया।
डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। Dainiktribuneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।