Pauranik Kathayen : सरस्वती नदी की उत्पत्ति ही नहीं विलुप्त होने की वजह भी एक श्राप, श्रीगणेश से जुड़ी कहानी
चंडीगढ़, 24 जनवरी (ट्रिन्यू)
सरस्वती एक पौराणिक नदी है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद और अन्य उत्तर-वैदिक ग्रंथों में मिलता है। इसे प्लाक्ष्वती, वेद्समृति, वेदवती भी कहते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं में यह नदी ज्ञान, संगीत और रचनात्मकता की देवी सरस्वती से जुड़ी हुई है।
नदी ने वैदिक धर्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मान्यता है कि महाकुंभ में संगम तट पर स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। हालांकि त्रिवेणी पर गंगा-यमुना तो दिखाई देती है, लेकिन सरस्वती नदी नजर नहीं आती।
भौगोलिक इतिहास और पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि नदी कभी राजस्थान से होकर बहती थी। फिर यह विलुप्त कैसे हो गई। चलिए आपको बताते हैं सरस्वती नदी से जुड़ी पौराणिक कहानियां...
जब ऋषि दुर्वासा से श्रापित हुईं सरस्वती
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा वेद ज्ञान के लिए ब्रह्मलोक गए और उन्होंने ब्रह्मदेव से वेद की ऋचाएं सीखाने की विनती की। चूकिं वेद की ऋचाएं गायन के पद में थीं इसलिए ब्रह्मदेव उन्हें गाकर सुना रहे थे।
सरस्वती नदी ऋषि दुर्वासा पर हंस पड़ी
मगर जब ऋषि दुर्वासा उन्हें दोहरा रहे थे तो मोटी आवाज के कारण स्वर सही नहीं लगा। इस कारण उनके श्लोक के अक्षर और श्रुतियों में बार-बार गलती हो रही थी। इसे देख पास बैठी सरस्वती नदी ऋषि दुर्वासा पर हंस पड़ी।
ऋषि दुर्वासा ने इसे अपमान समझ लिया और पलभर में क्रोधित होकर सरस्वती देवी को अहंकारी कह डाला। इसके बाद उन्होंने सरस्वती देवी को श्राप दिया कि उनकी स्वर और वाणी पानी की तरह बिखर जाएगी। वह धरती पर सहज और सुलभ होकर बहेगी, जिसके बाद सरस्वती अगले ही पल नदी में बदलकर ब्रह्नलोक से गिरकर धरती पर आ गईं।
धरती से कैसे विलुप्त हुई सरस्वती नदी?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, विनायक श्रीगणेश के आग्रह पर महर्षि वेदव्यास उन्हें सरस्वती नदी के किनारे महाभारत की कथा सुना रहे थे, लेकिन नदी अपने वेग में बह रही थी। बहाव के शोर के कारण महर्षि कथा नहीं सुना पा रहे थे।
ऐसे में उन्हें देवी सरस्वती से आग्रह किया कि वह अपना वेग कम कर लें, ताकि वह श्रीगणेश को कथा सुना सके। फिर भी सरस्वती देवी का वेग कम नहीं हुआ। इसके बाद क्रोध में महर्षि वेदव्यास ने उन्हें श्राप दे दिया कि वह कलयुग के आने तक विलुप्त हो जाएगा। ऐसा माना जाता है कि कल्कि अवतार के बाद ही उनका धरती पर आगमन होगा।
रामायण में भी सरस्वती नदी का जिक्र
'सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च, उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारूण्डं प्राविशद्वनम्' वाल्मीकि रामायण में जब भरत कैकय देश से अयोध्या पहुंचते हैं तब उनके आने के प्रसंग में सरस्वती और गंगा को पार करने का वर्णन है।
बद्रीनाथ धाम में दिखती है सरस्वती नदी
बद्रीनाथ धाम के माणा गांव के समीप पहाड़ी सोतों से आज भी गर्जना के साथ सरस्वती नदी का उद्गम होता है। कुछ दूर चलने के बाद वह भूमि में विलुप्त हो जाती है। नदी आज भी राजस्थान के थार मरुस्थल के नीचे गुप्त तरीके से बह रही है। शोर के कारण श्रीगणेश ने सरस्वती नदी को पाताल से होकर बहने का श्राप दिया था। इस चमत्कारी जगह को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
कहते हैं कि प्राचीन काल में तीर्थराज प्रयागराज में तीनों नदियों का संगम होता था, लेकिन श्राप के बाद सरस्वती नदी विलुप्त हो गईं। हालांकि ऐसी मान्यता है कि सरस्वती नदी भूमिगत होकर ही अदृश्य त्रिवेणी का निर्माण करती हैं। नदी के कुछ हिस्से अभी भी हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में भूमिगत रूप से बहते हैं।
डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। Dainiktribuneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।