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Pauranik Kahaniyan : जब पांडवों से छिपने के लिए भगवान शिव ने धर लिया था भैंसे का रूप, आप भी नहीं जानते होंगे केदारनाथ की ये पौराणिक कथा

08:19 PM Apr 18, 2025 IST

चंडीगढ़, 18 अप्रैल (ट्रिन्यू)

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Pauranik Kahaniyan : 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर देखने में जितना खूबसूरत है उतनी ही दिलचस्प है इसकी कहानी। कहा जाता है कि जब पांडव भगवान शिव की खोज में निकले तो भोलेनाथ वेश बदलकर यहीं छिप गए थे। चलिए आपको बताते हैं मंदिर से जुड़ी कहानी...

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पांडव वनवास पर थे तब उन्होंने अपने पापों का प्रायश्चित और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने का संकल्प लिया। विशेष रूप से युधिष्ठिर चाहते थे कि भगवान शिव उन्हें दर्शन दें, ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो और आगामी युद्ध में सफलता मिले। इस उद्देश्य से पांडव हिमालय की ओर बढ़े और वहां तपस्या करने लगे।

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भगवान शिव ने ली परीक्षा

भगवान शिव जानते थे कि पांडव उनकी खोज में हैं, लेकिन वे उनकी परीक्षा लेना चाहते थे। इस कारण भगवान शिव ने पांडवों से छिपने का निश्चय किया। उन्होंने एक विशाल और बलशाली भैंसे (नंदी) का रूप धारण किया। इस रूप में वे केदारखंड (वर्तमान केदारनाथ) की ओर चले गए। पांडव जब उस क्षेत्र में पहुंचे तो उन्होंने वहां एक असाधारण भैंसे को देखा।

भीम ने संदेह किया कि यह कोई सामान्य भैंसा नहीं हो सकता। उन्होंने भैंसे को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह अद्भुत गति से भागने लगा। भीम ने अपनी ताकत का प्रयोग कर भैंसे को रोकने की कोशिश की और वह उसकी पीठ पर कूद गया।

धरती में समा गए भगवान शिव

इस संघर्ष के दौरान भगवान शिव भैंसे के रूप में धरती में समा गए, लेकिन भीम ने उसकी पीठ को पकड़ रखा था। अंततः भगवान शिव को अपने असली रूप में प्रकट होना पड़ा। उन्होंने पांडवों को दर्शन दिए। उनके तप, श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद भी दिया। भगवान शिव ने कहा कि वे इस स्थान पर सदैव निवास करेंगे और यहां आने वाले भक्तों को आशीर्वाद देंगे।

ऐसे हुई पंच केदार की शुरुआत

माना जाता है कि उसी स्थान पर केदारनाथ मंदिर की स्थापना हुई, जहां भगवान शिव भैंसे के पिछले भाग के रूप में पूजित होते हैं। यही पंच-केदार की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है। उनके अन्य अंग पांच स्थानों पर प्रकट हुए जिन्हें पंच-केदार कहा जाता है। भगवान शिव जब बैल के रूप में धरती में समा रहे थे तो उस समय उनकी पीठ केदारनाथ में निकली, भुजाएं तुंगनाथ, मुख रुद्रनाथ, नाभि मध्यमहेश्वर और उनकी जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई।

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