Pauranik Kahaniyan : श्रीकृष्ण से जुड़ा मशहूर चंदेरी साड़ी का नाता, 3 फेब्रिक्स से की जाती है तैयार
चंडीगढ़, 2 मार्च (ट्रिन्यू)
Fashion Aur Itihas : महिलाएं चंदेरी साड़ी पहनना खूब पसंद करती हैं। मध्यप्रदेश के चंदेरी शहर से आने वाली यह साड़ी सिर्फ अपने फैब्रिक ही नहीं बल्कि डिजाइंस के लिए भी मशहूर हैं। उच्च गुणवत्ता वाली रेशमी और मलमल की धागों से तैयार होने वाली ये साड़ी आमतौर पर सोने-चांदी के जरी के काम के लिए भी जानी जाती हैं। मगर, क्या आप जानते हैं कि चंदेरी साड़ी का इतिहास भगवान श्रीकृष्ण और भारतीय संस्कृति व परंपरा से जुड़ा हुआ है।
महाभारत काल में हुई थी शुरुआत
ऐसा माना जाता है कि चंदेरी सिल्क साड़ी की शुरुआत महाभारत काल में मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले के चंदेरी शहर में हुई थी, जिसे बुनकरों की नगरी भी कहा जाता है। यह शहर बुंदेलखंड और मालवा को बांटने के लिए भी प्रसिद्ध है। वहीं, साड़ी की बात करें तो इसकी खोज श्रीकृष्ण के भाई ने की थी।
श्रीकृष्ण के भाई ने की थी साड़ी की खोज
दरअसल, भगवान श्रीकृष्ण की बुआ के बेटे शिशुपाल को चंदेरी साड़ी का खोजकर्ता माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब शिशुपाल का जन्म हुआ तो उनकी 100 आंखें थी, जो उनके पापों का सबूत थी। मगर, श्रीकृष्ण के छूते ही शिशुपाल की दो आंखों को छोड़कर अन्य आंखें गायब हो गई। श्रीकृष्ण ने उन्हें 100 पापों की माफी दे दी थी।
11वीं सदी में मिला बढ़ावा
11वीं सदी में देश के ज्यादातर व्यापारी चंदेरी शहर से ही गुजरा करते थे। आज के समय में मिलमेड यार्न से चंदेरी फैब्रिक तैयार किया जाता है लेकिन ब्रिटिश काल में इसे कॉटन यार्न से बनाया जाता था, जो मैनचेस्टर से आता था।
3 फेब्रिक्स से मिलकर बनती हैं ये साड़ियां
साल 1930 के आसपास चंदेरी सिल्क के ताने में जापानी सिल्क और बाने में कॉटन मिलाया जाने लगा। फिर चंदेरी में प्योर सिल्क, चंदेरी और सिल्क कॉटन फेब्रिक्स मिलाए जाने लगे। हालांकि भारत में ज्यादा चंदेरी साड़ियां रेशम और कपास के मिश्रण से बनती है। यह मिश्रण साड़ियों को हल्का और आरामदायक बनाता है। सिर्फ चंदेरी फेब्रिक की साड़ियां ही नहीं, नलफर्मा, मेहंदी, डंडीदार, जंगला और चटाई डिजाइन वाली साड़ियां व सूट के कपड़े भी आजकल काफी फेमस है।
धार्मिक और संस्कृति का अनोखा मेल
श्रीकृष्ण के साथ चंदेरी साड़ी का संबंध धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से है। श्रीकृष्ण के बारे में भारतीय परंपरा में विशेष रूप से शाही और दिव्य वस्त्रों का वर्णन किया गया है, जैसे रेशमी वस्त्र व सोने के गहनों से सजे हुए। इस संदर्भ में चंदेरी साड़ी का महत्व इसलिए है कि यह सुंदरता, परंपरा और दिव्यता का प्रतीक मानी जाती है, जो श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व से मेल खाती है।
कई अवसरों पर, जैसे कृष्ण जन्माष्टमी या अन्य धार्मिक आयोजनों में, लोग चंदेरी साड़ी पहनकर श्रीकृष्ण के आदर्शों का सम्मान करते हैं। चंदेरी साड़ी की सुंदरता और उसकी शाही शैली, श्रीकृष्ण के दिव्य और आकर्षक रूप से जुड़ी हुई प्रतीत होती है। इस प्रकार, चंदेरी साड़ी एक सांस्कृतिक प्रतीक है, जो श्रीकृष्ण की भव्यता और भारतीय शाही परंपरा को दर्शाता है।
डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।