Pauranik Kahaniyan : भोलेनाथ, विष और जल... जानिए कैसे हुई कावड़ यात्रा की शुरूआत, अमृत मंथन से जुड़ा कनेक्शन
चंडीगढ़, 10 जुलाई (ट्रिन्यू)
Pauranik Kahaniyan : हर साल कावड़ यात्रा के दौरान लाखों शिवभक्त जुलाई से अगस्त, खासकर श्रावण मास के दौरान पवित्र नदियों से जल भरकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों पर चढ़ाते हैं, जिन्हें कावड़िया भी कहा जाता है।
कावड़िया हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख, और अन्य पवित्र स्थानों से जल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसकी शुरुआत कैसे हुई?
समुद्र मंथन से जुड़ी पौराणिक कथा
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से 14 रत्न निकले थे। वहीं, समुद्र मंथन से सबसे खतरनाक हलाहल विष भी निकला था, जिसे कोई भी उसे ग्रहण ना कर सका। तब दुनिया को इससे बचाने के लिए सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और सृष्टि को बचाने के लिए भोलेनाथ ने सारा विष पी लिया।
इससे उनका खंठ नीला हो गया और वे "नीलकंठ" कहलाए। पौराणिक कथाओं के अनुसार, विष के प्रभाव को शांत करने के लिए देवताओं ने गंगा जल चढ़ाया, जिससे भगवान शिव को शीतलता मिली। ऐसा माना जाता है कि यहीं से यकावड़ा यात्रा की शुरुआत हुई। भक्त गंगा नदी से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं ताकि वे भगवान शिव को ठंडक मिले।
भगवान परशुराम की कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान परशुराम ने पहली बार गंगा से जल भरकर कावड़ के माध्यम से भगवान शिव को चढ़ाया था। यही कावड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। इस मान्यता के अनुसार, यह यात्रा आत्मशुद्धि और तपस्या का प्रतीक है।
भगवान श्रीराम और रावण से जुड़ी कथा
पुराणों के अनुसार , भगवान श्रीराम ने भी बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर बाबा बैद्यनाथ धाम में शिवलिंग को चढ़ाया था। वहीं, अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव के विष पीने के बाद रावण ने उनकी आराधना की और कावड़ में जल भरकर शिवलिंग को चढ़ाया ताकि उन्हें विष के तप से शांति मिली। यहीं से कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई।
हरिद्वार को कावड़ यात्रा का मुख्य केंद्र बन गया। वहां से जल लाकर भक्त विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार और दिल्ली के मंदिरों में चढ़ाते हैं। बाद में इसका विस्तार झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़, और महाराष्ट्र तक भी हुआ। कावड़ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं है, यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजन भी बन चुका है।
भक्त कावड़ यात्रा में शामिल होकर कई नियमों का पालन करते हैं जैसे:
-नंगे पांव चलना
-शुद्ध आहार लेना
-संयमित जीवन जीना
-रास्ते में दूसरों की सेवा करना
आज के समय में भक्तों के लिए "कावड़ पथ" बनाए जाते हैं, जिनसे वे सुरक्षित यात्रा कर सकें। कई जगहों पर "शिविर" लगते हैं, जहां भोजन, चिकित्सा, विश्राम और मनोरंजन की व्यवस्था होती है। कई युवा अब बाइक या ट्रक पर भी कावड़ यात्रा करते हैं, जिसे "डिजिटल कावड़" या "म्यूजिक कावड़" कहा जाता है। हालांकि परंपरावादी लोग इसे आध्यात्मिकता से भटकाव मानते हैं।