Pauranik Kahaniyan : धरती पर स्वर्ग... माता पार्वती यहीं करती थी स्नान, आदि कैलाश की 15000 फीट की ऊंचाई में बसा अद्भुत ताल
चंडीगढ़, 22 मई (ट्रिन्यू)
Pauranik Kahaniyan : कैलाश पर्वत, जिसे धरती का ध्रुव व भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है, हिंदू, बौद्ध, जैन और तिब्बती बोंध परंपराओं में अत्यंत पवित्र माना गया है। यह पर्वत न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इससे जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं और तीर्थस्थल भी हैं। इनमें से एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थल है- गौरीकुंड। गौरीकुंड, कैलाश पर्वत की तलहटी में स्थित एक पवित्र जलाशय है। इसका नाम देवी पार्वती (जिन्हें "गौरी" के नाम से भी जाना जाता है) के नाम पर रखा गया है। इस कुंड को लेकर एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है जो शिव-पार्वती के प्रेम, साधना और पारलौकिक शक्ति की गहराई को दर्शाती है।
माता पार्वती यहीं हुई थी शुद्ध
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप कर रही थीं। वह हिमालय में स्थित विभिन्न स्थानों पर तपस्या करती रहीं, जिनमें कैलाश पर्वत के निकटवर्ती क्षेत्र भी शामिल थे। एक दिन जब वे कैलाश के पास तप कर रही थीं, उन्होंने स्नान के लिए एक जलाशय का निर्माण किया। यह स्थान बाद में गौरीकुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यही वह स्थान था जहां देवी पार्वती ने भगवान शिव के लिए अपने शरीर की अशुद्धियों को धोया और दिव्य तेज से युक्त होकर उनके समक्ष उपस्थित हुईं। यह जलाशय इसलिए इतना पवित्र माना जाता है क्योंकि इसमें देवी पार्वती का साक्षात स्पर्श और उनकी साधना की ऊर्जा समाहित है।
यहीं हुई थी भगवान श्री गणेश की उत्पत्ति
एक और कथा के अनुसार, गौरीकुंड वही स्थान है जहां देवी पार्वती ने मिट्टी से गणेश जी की मूर्ति बनाकर उसमें प्राण फूंके थे। उन्होंने गणेश को द्वारपाल बनाया था, ताकि वह स्नान करते समय कोई भीतर न आ सके। जब भगवान शिव लौटे और गणेश ने उन्हें रोका तो क्रोधित होकर शिव ने उनका सिर काट दिया। बाद में पार्वती के आग्रह पर उन्होंने गणेश को हाथी का सिर लगाकर पुनर्जीवित किया। ऐसा माना जाता है कि यह कुंड माता पार्वती के नहाने की निजी जगह हैं जहां वह आज भी स्नान के लिए आती हैं।
धार्मिक महत्त्व
गौरीकुंड को साधकों और तीर्थयात्रियों के लिए आत्मशुद्धि का स्थान माना जाता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले भक्त गौरीकुंड में स्नान कर अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और शरीर व आत्मा की शुद्धि का अनुभव करते हैं। तिब्बती परंपरा में भी यह स्थान पूजनीय है और इसे 'संतुलन और शांति' का प्रतीक माना जाता है।