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इलाज के लिए तरसते मरीज, हांफने लगी स्वास्थ्य सेवाएं

07:25 AM Jul 18, 2024 IST
इलाज के लिए तरसते मरीज  हांफने लगी स्वास्थ्य सेवाएं
करनाल में सिविल सर्जन कार्यालय। -हप्र
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रमेश सरोए/हप्र
करनाल, 17 जुलाई
सरकारी अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र में मरीज इलाज को तरस रहे हैं, क्योंकि यहां डॉक्टरों की घोर कमी है। जो डॉक्टर हैं भी तो वे मरीजों के बढ़ते बोझ से हांफने लगे हैं। अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था दम तोड़ चुकी है। जिले में 9 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना डॉक्टरों के चल रहे हैं, जबकि 15 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) एक-एक डॉक्टरों के हवाले चल रही हैं। जिले में 270 डॉक्टरों की बजाए 110 डॉक्टरों से काम चल रहा हैं, इनमें भी करीब 15 से 20 डॉक्टर सरकारी कार्यक्रमों, प्रशासनिक कामों में जुटे है। कई अस्पतालों में स्थिति इतनी नाजूक हो चुकी हैं, मरीजों ओर डॉक्टरों के बीच तीखी नोंकझोंक की नौबत आना आम बात चुकी है।
डॉक्टरों की कमी इतनी है कि अगर कोई डॉक्टर अवकाश पर चला जाए तो अस्पताल बंद होने की कगार पर पहुंच जाता है। डॉक्टरों को अस्पताल चलाने के लिए बिना अवकाश लिए काम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा हैं। 36 सीएचसी, पीएचसी में से इंद्री ओर नीलोखेड़ी में केवल एक एमडी ओर 4 डिप्लोमा होल्डर डॉक्टर कार्यरत हैं बाकी में सिर्फ एमबीबीएस डॉक्टरों से अस्पतालों के चलवाया जा रहा हैं। एक डॉक्टर ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि प्रदेश में आबादी बढ़ने के बाद भी प्रदेश सरकार द्वारा डॉक्टरों के पदों को नहीं बढ़ाया गया, केवल संस्थान बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा हैं। जिसके चलते कई संस्थानों में डॉक्टर है ही नहीं। जो डॉक्टर काम कर रहे हैं, उनके पास वर्कलोड इतना बढ़ चुका हैं कि वे अब बहुत परेशान हो चुके हैं।
उन्होंने कहा कि जहां पर एक डॉक्टर हैं, उस डॉक्टर को ओपीडी के दौरान, अगर कोई लेबर रूम में दिक्कत आ जाए तो तुरंत वहां पर भागना पड़ता हैं। इसके अलावा लड़ाई झगड़े के केस, एक्सीडेंट आदि उन्हें ही देखना पड़ता हैं। अब बताएं कि जब मरीज ओपीडी में हो तो डॉक्टर दूसरी जगह चला जाए तो मरीज पर क्या बीतेंगी, इस दौरान मरीज ओर डॉक्टर के बीच काफी तनाव पैदा हो जाता हैं। इसके अलावा डॉक्टरों को सरकारी कार्यक्रम, प्रशासनिक काम, कोर्ट केस आदि सब देखने पड़ते हैं। डॉक्टर करें तो क्या करें।

अस्पतालों की नाजुक स्थिति
सिविल अस्पताल घरौंडा के साथ बरसत, चौरा, ब्याना, भादसों, खुखनी, सालवन, मूनक, गुल्ललरपुर प्राथमिक सामुदायिक केंद्र (पीएचसी) कोई डॉक्टर नहीं हैं। इसी तरह पीएचसी काछवा, सज्गा, बडौता, पधाना, गगसीना, जलमाना, मिरगैन, मधुबन, गुढा, कुटैल, उपलाना, पोपड़ा में मात्र एक-एक डॉक्टर कार्य कर रहा हैं। जबकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में (सीएचसी) निसिंग, पधाना, सांभली में एक-एक डॉक्टर लगा हुआ है। तरावड़ी सीएचसी में दो, निगदू में 3,बल्ला में 2 डॉक्टर काम कर रहे है।

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सेवाएं सुधारने के नाम पर केवल राजनीतिक स्टंट
अस्पताल में लोगों ने बताया कि स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने के लिए महज राजनीतिक स्टंट किए जा रहे है, असल तस्वीर को छिपाने के लिए केवल घोषनाएं कर दी जा रही हैं। लोगों के स्वास्थ्य के साथ मजाक को इस तरह से समझा जा सकता है कि सरकार को अस्पतालों की दयनीय हालात की स्थिति का पता होने के बावजूद भी स्थिति में कोई सुधार  न करना।
उन्होंने कहा कि सरकार के सामने लोगों का स्वास्थ्य अर्थात सरकारी अस्पतालों की स्थिति को सुधारना कोई मुद्दा नहीं है।

‘डॉक्टरों की कमी के बारे में मुख्यालय को लिखा’
सिविल सर्जन डॉ. कृष्ण कुमार ने बताया कि जिन पीएचसी पर डॉक्टर नहीं हैं, वहां पर नजदीक की सीएचसी, पीएचसी से डॉक्टरों को लगाया गया हैं। डेंटल सर्जन को लगातार सेवाएं दे रहे है। डॉक्टरों की कमी के बारे में हेड क्वार्टर को लिख दिया है। उन्होंने कहा कि अस्पतालों में मरीजों को बेहतर इलाज के लिए गंभीरता से प्रयास किए जा रहे है।

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