धैर्य से ही जीवन में खुशहाली की राह
देवेन्द्रराज सुथार
आधुनिक प्रतिस्पर्धा युक्त माहौल में अधिकाधिक धनोपार्जन एवं उत्तम सुख साधनों को प्राप्त करना जीवन का ध्येय हो गया है। जीवन से धैर्य गायब हो गया है। धैर्य ही समस्त सुखों का और लोभ समस्त दुखों का मूल कारण है। मनुष्य के मन में धैर्य होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है। यदि मन में धैर्य भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है। जैसे जल के बिना नाव कितने भी उपाय करने पर नहीं चल सकती, उसी प्रकार सहज धैर्य बिना कभी शांति नहीं मिल सकती।
धैर्य मानव जीवन का पर्याय है। लेकिन संसार के समस्त सुखों को त्याग कर धैर्य को परम सुख मानकर आदर्श स्थापित करना सरल नहीं है। सब सुख पाने के बाद भी धैर्य न आने पर जीवन अशांत बन जाता है। कष्ट, भूख और विपन्नता में रहने के बावजूद धैर्य में परम आनंद मिलता है। धैर्य और सहनशीलता के कारण ही भारतीय संस्कृति अत्यंत उदात्त और गरिमा मंडित है। केवल संपन्नता और धन की खोज करने वाले धैर्य की झलक से अपना व्यक्तित्व दूर रखते हैं। मनुष्य के जीवन में एक बार भी धैर्य आ जाने पर संपूर्ण जीवन अनन्य सुख और परम शांति से ओतप्रोत हो जाता है। मनुष्य को धैर्य की भावना से सकारात्मक दिशा मिलती है। धैर्य का फल सदा मीठा होता है।
मन में धैर्य आ जाने मात्र से हम संतुष्ट व आशावादी हो जाते हैं। आशावादी दृष्टिकोण से हम निराशा और चिंता से मुक्त हो जाते हैं। हमारे सभी दुख मिट जाते हैं, हम शांति से सोते हैं, खुशी-खुशी जागते हैं। हमारे हृदय में प्रेम और करुणा भरी रहती है और हमें असीम शांति का अहसास होता है। धैर्य के बिना मनुष्य निराशावादी हो जाता है और खुद को कोसता रहता है। अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए कार्यरत रहें और अपनी गुणवत्ता के स्तर को सुधारने के लिए प्रयासरत रहें। जिसके मन में धैर्य है, उसके लिए सब जगह संपन्नता है।
संत सुकरात के घर सवेरे से शाम तक सत्संग के लिए आने वालों का तांता लगा रहता था। सुकरात की पत्नी कर्कश स्वभाव की थी। वह सोचती थी कि निठल्ले लोग बेकार ही उसके घर अड्डा जमाए रखते हैं। वह समय-समय पर उनके साथ रूखा व्यवहार करती। इस बात से सुकरात को दुःख होता। एक दिन सुकरात लोगों के साथ बतिया रहे थे कि पत्नी ने उनके ऊपर छत से गंदा पानी उलीच दिया। इतना ही नहीं, वह उन्हें निठल्ला कहकर गालियां भी देने लगी। सत्संगियों को यह उनका अपमान लगा। सुकरात को भी यह व्यवहार बुरा लगा परंतु उन्होंने बहुत धैर्य के साथ उपस्थित लोगों से कहा-आप सभी ने सुना होगा कि जो गरजता है, वह बरसता नहीं। आज तो मेरी पत्नी ने गरजना-बरसना साथ-साथ कर उपरोक्त कहावत को ही झुठला दिया है। सुकरात के विनोद भरे ये शब्द सुनते ही तमाम लोगों का क्रोध शांत हो गया। वे पुनः सत्संग में लिप्त हो गए। सुकरात का धैर्य देखकर उनकी पत्नी चकित रह गई। उसी दिन से उसने अपना स्वभाव बदल दिया और आने वाले लोगों का सत्कार करने लगी।
महात्मा गांधी के जीवन की कई घटनाओं से धैर्य का प्रत्यक्ष उदाहरण मिलता है। जब पहली बार उन्हें दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति के कारण ट्रेन से उतारा गया तो उन्होंने तुरंत ही उसकी प्रतिक्रिया नहीं की। उन्होंने उस अधिकारी के साथ उलझना सही नहीं समझा बल्कि उस परिस्थिति को समझा और पाया कि इसके पीछे का कारण रंगभेद की नीति है और जब तक इस नीति के ऊपर प्रहार नहीं किया जाता, ऐसी घटनाओं को रोका नहीं जा सकता है। उन्होंने इसके लिए योजना बनाई और फिर संघर्ष शुरू किया। हालांकि, उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा लेकिन उन्होंने धैर्य नहीं खोया और उसी धैर्य ने उन्हें सफलता दिलाई।
मशीनीकरण के आधुनिक युग में व्यक्ति त्वरित परिणाम की लिप्सा का शिकार हो चुका है। बटन दबाकर चीजों को हाजिर करने की प्रवृत्ति ने व्यक्ति को अधीर बना दिया है। अब हम चुटकियों में सारे काम निपटाना चाहते हैं। वस्तुतः अब हममें धैर्य नहीं रहा। धैर्य के अभाव में हम समस्त ऊर्जा खर्च करने के बाद भी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। थक हारकर हम निराशा के गर्त में समा रहे हैं। यदि परिणाम तुरंत न आए तो हमारी उत्तेजना बढ़ जाती है। अधीरता ने हमारे विवेक को हर लिया है। अतः हमारी उत्कंठा हमारे सफलता के मार्ग में विघ्न डाल रही है।
बिना धैर्य के सफलता के लिए किए गए प्रयास निराशा में तबदील होकर हमें थका देंगे। हर काम अपने निश्चित समय पर पूर्ण होता है। भले ही माली पौधे की बार-बार सिंचाई इस आस में करे कि उसे फल तुरंत मिल जाएगा तो ये व्यर्थ उपक्रम है। फल ऋतु यानी समय आने पर ही मिलना संभव है।
अतः हमें धैर्य धारण करना चाहिए। धैर्य विषम परिस्थितियों में लड़ने का अचूक बाण है। धैर्य की शक्ति हमें कभी निराश नहीं होने देती तथा मंजिल तक पहुंचाने का सामर्थ्य रखती है। धैर्य वह मित्र है जो कभी हमें धोखा नहीं देता।