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सहज न्याय की राह

07:07 AM Jan 30, 2024 IST

 

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यह सुखद ही है कि देश की न्यायपालिका व कार्यपालिका इस बात को लेकर प्रतिबद्ध हैं कि अदालतों पर मुकदमों का बोझ घटाकर आम लोगों को सहज-सरल न्याय उपलब्ध कराया जाए। न्यायिक तंत्र में वंचित समाज व महिलाओं को न्यायसंगत प्रतिनिधित्व मिल सके। यह सुखद संकेत सुप्रीम कोर्ट की 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम से मिला, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने न्यायिक व्यवस्था में विश्वास बढ़ाने और मुकदमों का दबाव घटाने पर बल दिया। प्रधानमंत्री के इस तर्क से सहमत हुआ जा सकता है कि सशक्त न्याय व्यवस्था से न केवल लोकतंत्र को मजबूती मिलती है, बल्कि विकसित भारत को इससे आधार मिलेगा। न्यायपालिका और कार्यपालिका इस बात को लेकर गंभीर नजर आ रही हैं कि कैसे अदालतों में लंबित मुकदमों का बोझ घटे और आम आदमी को शीघ्र न्याय मिल सके। निस्संदेह, पिछले वर्ष केंद्र सरकार द्वारा तीन नये आपराधिक न्याय कानून बनाए जाने से भारतीय न्यायिक व्यवस्था मौजूदा चुनौतियों से मुकाबले में सक्षम हुई है। यह विडंबना है कि हम आजादी के सात दशक बाद भी देश प्रेमियों के खिलाफ बनाये गये ब्रिटिश कानूनों का बोझ ढोते रहे हैं। निस्संदेह, इस कदम से भारत की कानूनी, पुलिस और जांच प्रणाली न्यायिक प्रक्रिया को गति दे सकेगी। हालांकि, सरकार दावा कर रही है कि इस दिशा में क्षमता निर्माण और कानूनों के न्यायपूर्ण ढंग से क्रियान्वयन के लिये सरकारी कर्मियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके बावजूद नये कानूनों के उपयोग व सीमाओं से आम लोगों को अवगत कराना जरूरी है। निश्चित रूप से भारतीय न्यायिक व्यवस्था के प्रति भरोसा जगाने के लिये न्यायिक प्रणाली की विसंगतियों को दूर करने की जरूरत भी है। जिस ओर 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश ने ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा भी कि एक संस्था के रूप में प्रासंगिक बने रहने के लिये न्यायपालिका की क्षमता का विस्तार जरूरी है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस मौके स्थगन की संस्कृति और लंबी छुट्टियों के मुद्दे की ओर भी ध्यान खींचा। साथ ही उन्होंने वंचित समाज के लोगों को न्यायिक व्यवस्था में प्रतिनिधित्व दिये जाने की जरूरत बतायी। हालांकि, देश की शीर्ष न्यायिक व्यवस्था में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि जिला न्यायपालिका में महिलाओं की 36 फीसदी भागीदारी सुनिश्चित हुई है। जो कालांतर में शीर्ष स्तर पर लैंगिक समानता की राह बनाएगी। बहरहाल, राजग सरकार ने न्यायिक प्रणाली के प्रति भरोसा जगाने के लिये कई बदलावकारी फैसले लिये हैं। जिनमें जन विश्वास बिल का प्रधानमंत्री ने बार-बार जिक्र किया है। कहा जा रहा है कि इससे भविष्य में भारतीय न्यायिक प्रणाली पर बोझ कम हो सकेगा। बीते साल केंद्रीय कैबिनेट ने जन विश्वास विधेयक में संसदीय समिति द्वारा दिए गए सुझावों को मंजूरी प्रदान की थी। दरअसल, जन विश्वास (प्रावधान संशोधन) विधेयक 2023 को जीवन व कारोबार सुगमता को बढ़ावा देने वाला बताया जा रहा है। इसके अंतर्गत 42 अधिनियमों में 183 प्रावधानों में संशोधन करके छोटी गलतियों को अपराध की श्रेणी से हटाने का प्रावधान किया गया है। इसके अंतर्गत 19 मंत्रालयों से जुड़े अधिनियमों के प्रावधानों में संशोधन की बात कही गई है। संसद की संयुक्त समिति ने विधायी और विधि मामलों के विभागों के अलावा 19 मंत्रालयों से प्रावधानों को हटाने को लेकर विस्तृत चर्चा की थी। दरअसल, संसदीय समिति ने केंद्र सरकार को कारोबार तथा जीवनयापन को सुगम बनाने के लिये जन विश्वास विधेयक की तर्ज पर छोटे मामलों को अपराध की सूची से बाहर निकालने का सुझाव दिया था। जिसके लिये राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को प्रोत्साहन देने का सुझाव भी दिया था। समिति का सुझाव था कि इन प्रावधानों में संशोधन पिछली तिथियों से हो ताकि न्यायालय को लंबित मामलों को निपटाने में सहायता मिल सके। संसदीय समिति का अन्य सुझाव था कि मुकदमों में बढ़ोतरी से बचने के लिये कारावास के बजाय मौद्रिक दंड का प्रावधान किया जाए। साथ ही, छोटे-मोटे मामलों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए।

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