साहित्यिक अवदान का भावपूर्ण स्मरण
कमलेश भारतीय
हरियाणा के प्रसिद्ध कवि और रुबाई सम्राट उदयभानु हंस पर आनंद प्रकाश आर्टिस्ट की कृति ‘उदयभानु हंस : जीवन एवं साहित्य’ कुछ शोध तो कुछ जानकारी प्रस्तुत करती है। इससे पहले भी आनंद प्रकाश आर्टिस्ट ‘उदयभानु हंस की साहित्यिक उड़ान’ और ‘उड़ गया हंस अकेला’ पुस्तकें दे चुके हैं।
सन् 1997 से हिसार में हंस की अंतिम बेला तक उनकी कार्यशैली और काव्य प्रतिभा को जानने-समझने का अवसर मिला। हंस की सबसे बड़ी देन हरियाणा के रचनाकारों के लिए ‘हंस पुरस्कार’ कही जा सकती है जो उन्होंने तब शुरू किया जब सन् 1995 में हरियाणा सरकार ने पुरस्कार देने बंद कर दिये। हंस पुरस्कार हरियाणा का एक प्रतिष्ठित पुरस्कार बन गया और उसे अंतिम समय तक निभाया और चलाया। दूसरी बड़ी देन घर-घर साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन जिससे हिसार साहित्यिक शहर बना। इन दोनों विशेषताओं का आनंद आर्टिस्ट ने भी जिक्र किया है।
हंस को धर्मोपदेशक बनाने की पिता की इच्छा थी लेकिन वह भी इनके संवेदनशील व्यक्तित्व को रास न आई। आखिरकार प्राध्यापक बने और काव्य रचना से अपना नाम बनाया। हो सकता है कि प्रवचन शैली परिवार को विरासत के रूप में मिल गयी हो।
हंस की इन पंक्तियों को अनेक बार संसद में भी सुना गया :-
पंछी ये समझते हैं कि चमन बदला है
हंसते हैं सितारे कि गगन बदला है
श्मशान की खामोशी ये कहती है मगर
है लाश वही, सिर्फ कफन बदला है।
इसी प्रकार हंस की ये पंक्तियां भी काफी चर्चित रहीं :-
मैं शब्द का मकरंद नहीं बेचूंगा
अनुभूति का आनंद नहीं बेचूंगा
मैं भूख से मर जाऊंगा हंसते-हंसते
रोटी के लिए छंद नहीं बेचूंगा...
ये पंक्तियां भी हंस से बार-बार सुनी जाती थीं :-
मैं साधु से आलाप भी कर लेता हूं
मंदिर में कभी जाप भी कर लेता हूं
मानव से कहीं देव न बन जाऊं
यह सोच कर के पाप भी कर लेता हूं...
आनंद प्रकाश आर्टिस्ट ने उदयभानु हंस के जीवन के विविध रंगों, पहलुओं और घटनाओं को एकत्रित कर एक पुस्तक का रूप दिया, यह सराहनीय है।
पुस्तक : उदयभानु हंस : जीवन एवं साहित्य संपादन : आनंद प्रकाश आर्टिस्ट प्रकाशक : आनंद कला मंच प्रकाशन, भिवानी पृष्ठ : 200 मूल्य : रु. 500.