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स्वच्छता का जज्बा

06:37 AM Jan 13, 2024 IST

एक बार फिर स्वच्छता के देशव्यापी सर्वे में इंदौर ने सातवीं दफा अपना ताज बरकरार रखा, हालांकि इस बार कभी प्लेग से जूझने वाला सूरत भी साथ खड़ा नजर आया। निश्चित रूप से सफलता के शिखर पर पहुंच जाना महत्वपूर्ण होता है, लेकिन शिखर पर सात साल तक टिके रखना बड़ी बात होती है। जाहिर है यह सफलता सिर्फ प्रशासन व स्थानीय निकाय की ही कोशिशों से संभव नहीं थी, जब तक कि इसमें जनभागीदारी सुनिश्चित न होती। इंदौर ने घर-घर से कचरा उठाने, अगलनीय कचरे को अलग करने व कचरे का पुनर्चक्रण करने जैसे कई चरणों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। कभी सिटी ब्यूटीफुल के उपनाम से पहचान बनाने वाले चंडीगढ़ का स्वच्छता सर्वे में सर्वश्रेष्ठ सफाई मित्र बनना संतोष की बात है। लेकिन हरियाणा, पंजाब व खुद केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ की राजधानी होने तथा देश के पहले नियोजित शहर होने के नाते इस शहर को स्वच्छता के शीर्ष मानकों में खरा उतरना चाहिए था। वहीं इंदौर के साथ पहला स्थान साझा करने वाले सूरत की उपलब्धि भी सराहनीय है। कभी प्लेग की महामारी के कारण दुनियाभर में सुर्खियों में आने वाले सूरत का स्वच्छता के मानकों पर खरा उतरना निश्चित ही चौंकाने वाला है। महामारी के बाद इस शहर में सफाई के प्रयास युद्धस्तर पर किये। पिछले तीन दशक में लगातार स्वच्छता के प्रयासों का नतीजा है कि सूरत का कायाकल्प हुआ है। राज्य के रूप में महाराष्ट्र ने बाजी मारी है। वहीं गंगा किनारे बसे शहरों में वाराणसी अव्वल रहा है। मगर उत्तर प्रदेश व बिहार के किसी भी शहर का देश के दस स्वच्छ शहरों की सूची में स्थान न बना पाना नीति-नियंताओं को आत्ममंथन का मौका देता है। बिहार को भी सोचना चाहिए कि क्यों उसकी राजधानी पटना का स्थान ढाई सौ शहरों से ऊपर है। इन राज्यों को स्वच्छता को लेकर युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है। स्वच्छ शहर शोभनीयता के अलावा जनस्वास्थ्य की दृष्टि से भी विशेष महत्वपूर्ण है।
बहरहाल, केंद्रीय शहरी विकास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने पिछले लगभग एक दशक से स्वच्छता रैंकिंग जारी करके देश में सफाई के प्रति एक स्वस्थ प्रतियोगिता शुरू की है। सभी राज्यों को सफाई के लिये प्रेरणा मिली है। जन-जन में भी जागरूकता आई। लेकिन स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने के लिये अभी अधिक प्रयासों की जरूरत है। हमें याद रहे कि लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छ भारत मिशन की घोषणा किये दस साल हो गए हैं। अपेक्षित लक्ष्य पाने के लिये अतिरेक प्रयास करने की जरूरत है। यह भी समझने की जरूरत है कि गंदगी से ही तमाम बीमारियों को पैदा करने वाले जीवाणु-विषाणु पनपते हैं। हम स्वच्छता को प्राथमिकता देकर बीमारियों पर होने वाले खर्च को भी बचा सकते हैं। हम विचार करें कि इंदौर जैसी प्रशासनिक व जनता की भागीदारी अन्य शहरों व राज्यों में क्यों नहीं होती। यह भी कि हम घर में तो साफ-सफाई रखते हैं, लेकिन सार्वजनिक स्थलों पर सफाई को लेकर गंभीर क्यों नहीं होते। क्यों हम घर से निकलने वाले कचरे का वर्गीकरण सूखे, गीले और अगलनीय कचरे के रूप में नहीं करते। निश्चित रूप से दिल्ली में आबादी के भारी दबाव का स्वच्छता पर असर पड़ता है। लेकिन फिर भी राष्ट्रीय राजधानी में दिखने वाले कचरे के वास्तविक पहाड़ देश को शर्मसार करते हैं। जिस पर राजनीति तो होती है, लेकिन सारे दल मिलकर इसे हटाने का प्रयास नहीं करते। दरअसल, सफाई हमारी आदत में शामिल होनी चाहिए और प्रशासन को सफाई व्यवस्था दुरुस्त करने का सलीका आना चाहिए। स्थानीय निकायों को घर-घर से वर्गीकृत कूड़ा उठाने, सीवरों की सफाई और उनका पानी जीवनदायिनी नदियों में जाने से रोकने के लिये अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। कचरे के निस्तारण के लिये हरित तकनीक प्रयोग हो। सफाई मित्रों की सुरक्षा व सम्मान सुनिश्चित किया जाए। जिससे पूरे देश में स्वच्छता के प्रति जागरूकता को विस्तार मिले। हमें ध्यान रखना चाहिए कि पर्यावरण प्रदूषण से देश में लाखों लोगों की जान चली जाती है। सफाई की दिशा में कदम उठाकर हम पर्यावरण को शुद्ध बनाने का महती दायित्व निभा सकते हैं।

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