पाक के आतंकी मंसूबे
हाल में जम्मू-कश्मीर में पाक प्रशिक्षित आतंकियों के हमले ने एक बार फिर देश की चिंताएं बढ़ाई हैं कि 26/11 के आतंकी हमले के पंद्रह साल बाद भी पाकिस्तान के घातक मंसूबे कायम हैं। वह भारत को नुकसान पहुंचाने के लिये आतंकवादी रणनीतियों में लगातार बदलाव कर रहा है। देश में उत्तरी सेना के एक कमांडर का यह दावा हमारी चिंता बढ़ाने वाला है कि जम्मू-कश्मीर में सेवानिवृत्त पाकिस्तानी सैनिक आतंकवादी समूहों का हिस्सा है। उन्होंने उच्च प्रशिक्षित विदेशी आतंकवादियों की घुसपैठ कराने के प्रयासों की तरफ भी इशारा किया क्योंकि स्थानीय आतंकियों की भर्ती नहीं हो रही है। सेना द्वारा आशंका जतायी जा रही है कि राजौरी और पुंछ के सीमावर्ती जिलों में कम से कम 20-25 आतंकवादी सक्रिय हैं। यह तो पहले से जाहिर है कि भारत के उच्च प्रशिक्षित सैन्य अधिकारियों व सैनिकों से मुकाबला करने वाले आतंकवादी सेना जैसा प्रशिक्षण हासिल किये होते हैं। जाहिर है पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठानों से जुड़े संगठन इस खतरनाक खेल में शामिल हैं। हाल ही में राजौरी में दो स्थानों पर हुई मुठभेड़ में दो सैन्य अधिकारियों समेत पांच सैनिक शहीद हुए। शांतिकाल में यह बड़ी व चिंताजनक क्षति है। बहरहाल पिछले हफ्ते राजौरी में 31 घंटे चली मुठभेड़ के बीच पीर पंजाल क्षेत्र से आतंकवाद को जड़ से खत्म करने का नया संकल्प लिया गया। इस मुठभेड़ में लश्कर-ए-तैयबा का एक शीर्ष कमांडर और उसका सहयोगी भी मारा गया। लेकिन पाक आर्थिक बदहाली व राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। शायद पाक को पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री की वह बहुचर्चित चेतावनी याद नहीं रही, जिसमें उन्होंने कहा था कि आप अपने पिछवाड़े में सांप नहीं पाल सकते और उनसे यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे केवल आपके पड़ोसियों को ही काटेंगे। हकीकत यह है कि अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से पाकिस्तान में पाक तालिबानी संगठन के हमले अप्रत्याशित रूप से बढ़ गये हैं।
निस्संदेह, आज पाकिस्तान न केवल राजनीतिक व आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा है बल्कि उसे तालिबान की चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है। पाक में गंभीर स्थिति के बावजूद देश चलाने वाली सेना द्वारा रिटायर्ड फौजियों को सीमा पर भेजकर आतंकवाद को बढ़ावा देना भारत के लिये बड़ी चुनौती है। इन चुनौतियों के बीच सतर्कता की स्थिति में किसी तरह की ढील नहीं दी जानी चाहिए। निश्चित रूप से 26/11 का भयावह आतंकी हमला हमारी सुरक्षा तैयारियों में चूक की तरफ ध्यान दिलाने वाला घटनाक्रम भी था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, चिंताजनक बात यह है कि हमारी सुरक्षा का पारिस्थितिकीय तंत्र कई मामलों में उदासीन बना हुआ है। बताया जा रहा है कि समुद्र के रास्ते आतंकवादियों के भारत में प्रवेश के बाद तटों पर नजर रखने के लिये जिन 46 आधुनिक नौकाओं को खरीदा गया था, उनमें से केवल आठ ही काम कर रही हैं। हाल ही में सुरक्षा के मामले में चाकचौबंद इस्राइल पर हमास के घातक हमले ने पूरे दुनिया को सबक दिया है कि किसी भी चूक की हमें बड़ी कीमत चुकानी होती है। घटनाक्रम ने बताया कि सुरक्षा मामलों में आत्मसंतुष्टि या अजेयता की भावना प्रदर्शित करने के घातक परिणाम सामने आ सकते हैं। घटनाक्रम का एक सबक यह भी है कि हमें वैश्विक समर्थन पर अत्यधिक निर्भर नहीं रहना चाहिए। हमारी तैयारियों से ही आतंकवादियों का कारगर ढंग से मुकाबला संभव हो सकता है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसके समाधान के लिये हमें बाहरी मदद की जरूरत हो। इससे निपटने के लिये हमें अपने सभी संसाधनों का बेहतर ढंग से इस्तेमाल करना होगा। वहीं दूसरी ओर आतंकग्रस्त जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर सुरक्षा से जुड़ी रणनीतियों पर नये सिरे से विचार करने की जरूरत होगी। हमें उग्रवाद को बढ़ावा देने वाली आंतरिक सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक शिकायतों को प्राथमिकता के आधार पर दूर करना होगा। समावेशी शासन के जरिये रोजगार, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाकर स्थानीय लोगों का विश्वास हासिल करना होगा। स्थानीय लोगों का सहयोग व सूचनाएं आतंकवाद से मुकाबला करने में सहायक साबित हो सकती हैं।