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सेना की निरंकुशता का दंश झेलता पाक लोकतंत्र

07:05 AM Feb 06, 2024 IST
सेना की निरंकुशता का दंश झेलता पाक लोकतंत्र
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जी. पार्थसारथी

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अखबार की एक हालिया रिपोर्ट में वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार मलीहा लोधी, जो विगत में एक बड़े राजनयिक पद पर भी रह चुकी हैं, लिखती हैं कि पाकिस्तान के वर्तमान सैन्य प्रतिष्ठान का मुख्य ध्येय यह सुनिश्चित करना है कि इमरान खान प्रधानमंत्री न बनने पाएं। इमरान खान और उनकी पत्नी बुशरा को भ्रष्टाचार के एक मामले में 14 साल की सजा मिली है। सरकारी गुप्त भेद जाहिर करने के एक अन्य मामले में इमरान खान को पहले ही 10 साल की कैद सुनाई जा चुकी है। कोई हैरानी नहीं कि पाकिस्तान का राजकाज एक अंतरिम सरकार के हाथ में होने के बावजूद पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा अपने चेले ले. जनरल असीम मुनीर को अपनी जगह बैठवा पाए, जब नवम्बर, 2022 को उन्हें नया सेनाध्यक्ष बनाया गया। पूर्वानुमानों के अनुसार सेनाध्यक्ष बनते सार जनरल मुनीर की पहली विदेश यात्राओं में एक था वाशिंगटन डीसी का हालिया दौरा। यह जनरल बाजवा ही थे जिन्होंने अमेरिका के कहने पर पाकिस्तान से यूक्रेन को हथियार और गोला-बारूद मुहैया करवाया था। यूक्रेन जैसे मामले से इतर भी अमेरिका का पाकिस्तान पर काफी प्रभाव अभी भी कायम है। हालांकि इसका पाकिस्तान और उसके सदाबहार दोस्त चीन के बीच रिश्तों पर कोई असर नहीं है।
पाकिस्तानी सेना का देश के घरेलू मामलों और विदेश नीति में भारी दखल बना हुआ है। इमरान खान संसदीय चुनाव जीतकर पुनः सत्ता हासिल न करने पाएं, इसके पीछे सेनाध्यक्ष की भूमिका खासी है। इमरान खान ने अमेरिका के खिलाफ भी काफी ज़हर उगला था। आज पाकिस्तान के लिए फिक्र करने लायक केवल भारत नहीं है क्योंकि उत्तर में अफगानिस्तान और पूर्वी पड़ोसी ईरान के साथ उसके रिश्ते तल्ख हैं। इस बीच, चीन और ईरान अफगानिस्तान पर डोरे डाल रहे हैं तो पाकिस्तान अपने यहां शरण लिए बैठे लगभग 37 से 44 लाख अफगान-पश्तूनों को खदेड़ना चाहता है। यह शरणार्थी वही अफगान लोग हैं, जिनका इस्तेमाल कर पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में पहले सोवियत संघ और फिर अमेरिका के विरुद्ध छद्मयुद्ध चलाए रखा था। लेकिन इसका शुद्ध परिणाम है अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव। भारत उन 10 क्षेत्रीय मुल्कों में एक है जिन्होंने हाल ही में तालिबान द्वारा काबुल में क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित किए सम्मेलन में भाग लिया। इसमें भारत, कजाखस्तान, तुर्की, रूस, चीन, ईरान, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, इंडोनेशिया और किर्गिज़स्तान ने भाग लिया। जाहिर है भारत आगे भी गेहूं आपूर्ति, बुनियादी ढांचा निर्माण, शिक्षा क्षेत्र के विकास हेतु अफगानिस्तान की मदद जारी रखेगा। इसलिए अफगान जनता भारत की उपस्थिति का स्वागत करती है। पाकिस्तान इस प्रक्रिया में अड़ंगा लगाने लायक नहीं रहा क्योंकि अब सहायता सामग्री ईरान के चाबहार बंदरगाह के जरिये पहुंच रही है। इसी बीच, भारत की भांति यूएई ने तालिबान सरकार के साथ निकट सहयोग स्थापित कर लिया है।
तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार पाकिस्तान में 8 फरवरी को आम चुनाव होंगे, इमरान खान और नवनियुक्त सेनाध्यक्ष के बीच दुश्मनी के कारण यह गैर-मामूली होने वाले हैं। इमरान खान और जनरल मुनीर के बीच कभी नहीं पटी और उन्हें निजी खुन्नस इसलिए भी है क्योंकि प्रधानमंत्री रहते हुए उनकी नियुक्ति बतौर आईएसआई महानिदेशक करने में इमरान खान ने अड़ंगा लगाया था। नतीजतन सरकारी नियमों का गंभीर उल्लंघन करने के दोष में इमरान खान को एक के बाद एक मुकदमें झेलने पड़ रहे हैं। इनमें एक है, इमरान खान द्वारा वाशिंगटन स्थित पाकिस्तान के राजदूत असर माजिद खान द्वारा भेजे अति गुप्त संदेश के ब्योरे को जगजाहिर करना जो उनके और अमेरिका के विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अफसर के बीच मुलाकात के दौरान का संवाद है। यह अमेरिका की नीतियों का ठोस संकेत देता और पाकिस्तान को लेकर अमेरिका की पसंद-नापसंद पर बातचीत पर आधारित गुप्त संदेश था। किंतु इमरान खान ने गलत सलाह मानकर यह सूचना सार्वजनिक कर दी। इमरान खान और पत्नी बुशरा पर तेजी से मुकदमा चला और जेल की सजा मिली।
इस घटनाक्रम ने पाकिस्तान में इमरान खान पर विशेष अदालत में एक अन्य मामला चलाने की राह खोल दी, जिसमें हाल ही में उन्हें 10 साल की कैद की सजा सुनाई गई है। हालांकि, इमरान ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का उल्लंघन करने वाले दोषों को नकारा है। उनका कहना है कि पाकिस्तानी जनता के प्रति उत्तरदायित्व के हितार्थ उन्होंने वाशिंटगन से मिले संदेश को सार्वजनिक किया क्योंकि इसमें उन्हें अपदस्थ करने वाली कथित साजिश का जिक्र था। रोचक कि जहां यह सब हो रहा है वहीं सोमालियाई डाकुओं द्वारा अपहृत एक ईरानी जलयान, जिसका पूरा अमला पाकिस्तानी है, भारतीय नौसेना ने छुड़वा लिया। भारतीय नौसेना द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार ईरानी ध्वज लगे और पाकिस्तानी स्टाफ वाले एक जलयान का अपहरण सोमालियाई समुद्री डाकुओं द्वारा किए जाने की सूचना मिलने पर भारतीय विध्वंसक जलपोत ने प्रति-कार्रवाई करते हुए उसे सोमालिया के तट के पास बचा लिया। अलबत्ता पाकिस्तान ने इस घटना पर चुप्पी साध रखी है।
इमरान खान की जबरन विदाई के बाद, जब से जनरल मुनीर ने कार्य संभाला है, बड़ी शिद्दत से प्रयास करके सुनिश्चित किया जा रहा है कि जो कोई भी इमरान खान का नज़दीकी या उनकी सरकार का सक्रिय मददगार रहा, उसको पकड़कर मुकदमा चलाया जाए। इनमें पूर्व विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी भी एक हैं, विशेष अदालत ने उन्हें 10 साल की कैद सुनाई है। स्पष्टतः इमरान खान को जनरल मुनीर की निजी अदावत का कोप झेलना पड़ रहा है। हालांकि इमरान खान को हटाये जाने के बाद मुनीर पहले आईएसआई मुखिया बने, फिर सेनाध्यक्ष।
पाकिस्तान में आमतौर से माना जा रहा है कि यदि 8 फरवरी के संसदीय चुनाव में इमरान खान को चुनाव में भाग लेने दिया होता तो जीत उनकी पार्टी की हो सकती थी। हालांकि अब माना जा रहा है कि पाकिस्तानी संसद में सबसे ज्यादा सीटें नवाज़ शरीफ के दल की रहेंगी। वैसे तो नवाज़ शरीफ कमोबेश भारत के साथ संबंध अच्छे रखने का वादा करते आए हैं, लेकिन इस मामले में भारत को उनका और उनके सेनाध्यक्ष का रुख अच्छी तरह समझने के बाद सावधानीपूर्वक कदम बढ़ाने होंगे। बेशक पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा भारत से संबंध अच्छे रखने के पैरोकार रहे, वहीं उनके शागिर्द जनरल मुनीर इस मामले में अपने गुरु के विचारों से जाहिराना तौर पर इत्तेफाक नहीं रखते। पंजाब के कुछ अलगाववादी तत्वों को लेकर नवाज़ शरीफ का रिकार्ड कतिपय कारणों से अच्छी भावना वाला नहीं रहा। इसको जहन में रखना जरूरी है। पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के अंदर दोनों मुल्कों में व्यक्ति से व्यक्ति का संबंध, व्यापार और आर्थिक सहयोग और संपर्क बनने को लेकर डर कायम है। नवाज़ शरीफ और जनरल मुनीर ऐसे प्रस्तावों पर क्या रुख रखेंगे, यह देखना बाकी है।

लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

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