साफगोई-बेबाकी से खुले जीवन के पन्ने
हेमंत पाल
कबीर बेदी ने बहुत ज्यादा हिंदी फिल्मों में काम नहीं किया, पर जो भी फ़िल्में की, उसमें उनको भुलाया नहीं सकता। वे ऐसे अभिनेता हैं, जिन्हें किसी दायरे में नहीं बांध सके। उन्होंने डाकू की भूमिका भी की और निर्दयी पति की भी! लेकिन, जो भी किरदार निभाया वो दर्शकों को हमेशा याद रहा। लेकिन, कबीर बेदी को लोग फिल्मों से ज्यादा उनकी निजी जिंदगी के लिए याद रखते हैं। उन्होंने अपनी बायोग्राफी ‘स्टोरीज आई मस्ट टेल : द इमोशनल लाइफ ऑफ द एक्टर’ (हिंदी अनुवाद कही-अनकही) में अपनी जिंदगी से जुड़े खुलासे बड़ी बेबाकी से किए। अपनी बायोग्राफी में उन्होंने बताया कि कैसे परवीन बाबी से प्यार के बाद उन्होंने पत्नी प्रोतिमा से अपना रिश्ता तोड़ लिया था। यह घटनाक्रम इतने दिलचस्प तरीके से लिखा गया है कि पढ़ने वाला बंधा रह जाता है।
फ़िल्मी दुनिया के अपने सफर का जिक्र करते हुए कबीर बेदी ने लिखा कि वे 1700 रुपये लेकर मुंबई आए थे। तब उन्हें करिअर और भविष्य की ज्यादा समझ नहीं थी। जब काम के लिए कोशिश की, तो सभी ने खलनायक की भूमिका कि बात की। क्योंकि, कद-काठी से वे न किसी के भाई लगते थे, न दोस्त और न नायक। सभी डायरेक्टरों का कहना था कि तुम खलनायक के ही लायक हो। कबीर ने लिखा कि प्रोफेशनल लाइफ के अलावा पर्सनल लाइफ में भी मैं खलनायक ही बना रहा। असल जीवन में भी मेरी तीन शादियां हुईं। पहली शादी डांसर प्रोतिमा से हुई। शुरुआत बहुत खुशियों भरी थी, लेकिन यह साथ चार साल से ज्यादा नहीं चला। दूसरी शादी अमेरिकी मूल की निक्की से हुई और तीसरी शादी परवीन बॉबी से जिससे भी लम्बा साथ नहीं रहा। कबीर का मानना है कि शादी कोई बंधन नहीं, बल्कि जीने का एक बेबाक अंदाज है। कबीर के मुताबिक, मैं शादी के बंधन में बंधकर नहीं रह सका। फिल्मों की तरह निजी जीवन में भी खलनायक की भूमिका में ही जीता रहा।
कबीर बेदी ने अपने नजरिए के बारे में भी लिखा कि खुद की क्षमता पर से कभी भरोसा नहीं उठने देना चाहिए। सफलता निश्चित रूप से आपके कदम चूमेगी। क्योंकि, अवसर कभी दस्तक नहीं देता, इसे सही समय पर अनुभव करना पड़ता है। विश्वास कमाने की चीज है। कबीर बेदी ने अपनी इस किताब में जीवन से जुड़ी कई कहानियां साझा की। दिल्ली में पढ़ते थे, तब बीटल्स उनकी मुलाक़ात। फिर अचानक घर और कॉलेज को छोड़कर फिल्मों में एक्टर बनने के लिए मुंबई जाना। विज्ञापन की दुनिया के रोमांच के अलावा विदेश में ‘संदोकान’ जैसी इटेलियन फिल्म की सफलता और फिर नाकामयाबी। उन्होंने अपने दार्शनिक इंडियन पिता और इंग्लैंड में जन्मी मां की दिलचस्प प्रेम कहानी का भी जिक्र किया, जो बौद्ध भिक्षुक थीं। उन्होंने सिजोफ्रेनिया पीड़ित अपने बेटे को बचाने का संघर्ष का भी खुलासा किया।
कबीर बेदी का आत्मकथ्य ‘कही-अनकही’ ऐसे साधारण आदमी का असाधारण स्पष्टवादी संस्मरण है, जिसने अपने जीवन की कोई बात नहीं छुपाई। न प्यार की तीन कहानियां और न करिअर की बातें। दरअसल, ये आदमी के संवरने, बिखरने और फिर अपने दम पर खड़े होने की दास्तान है। इस शख्स ने अपनी इस किताब में बेहद साफगोई से अपने जीवन के हर पन्ने को खोला इसलिए एक पठनीय दस्तावेज़ बनी। मूलतः अंग्रेजी में लिखी पुस्तक ‘स्टोरीज आई मस्ट टैल’ का हिंदी अनुवाद ‘कही-अनकही’ है, जिसे प्रभात रंजन ने हिंदी पाठकों के लिए रोचक अंदाज में परोसा है।
पुस्तक : कही-अनकही लेखक : कबीर बेदी अनुवाद : प्रभात रंजन प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल पृष्ठ : 269 मूल्य : रु. 499.