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Osho Rajneesh : बंधु, घी खाने की नहीं पीने की चीज है...जब ओशो ने सहपाठी से कही ये बात, जानें छात्र जीवन से जुड़े कुछ खास किस्से

08:01 PM Dec 13, 2024 IST
osho rajneesh   बंधु  घी खाने की नहीं पीने की चीज है   जब ओशो ने सहपाठी से कही ये बात  जानें छात्र जीवन से जुड़े कुछ खास किस्से
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चंडीगढ़, 13 दिसंबर (ट्रिन्यू)

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Osho Rajneesh : दुनिया में लाखों लोग संत रजनीश ओशो के दीवाने है। कोई उन्हें भगवान मानता था तो कोई खलनायक। ओशो इस दुनिया में नहीं है फिर भी उनके विचारों का लोगों पर गहरा प्रभाव है। ओशो का जीवन जितना रहस्यमयी था, उतनी ही उनकी मौत भी। आइए जानते हैं उनसे जुड़े कुछ ऐसे किस्से जो शायद ही किसी को पता हो।

दरअसल, संत रजनीश ओशो के एक सहपाठी सत्यमोहन वर्मा ने इस पर बात की। एक मीडिया चैनल को दिए साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि जब ओशो वाद-संवाद करते थे तो बहुत तर्कसंगत के साथ करते थे। बहुत विद्वान उनके वाद में सम्मिलित होते थे। मेरी उनके साथ पहली मुलाकात बड़ी मजेदार थी। हम कैंटीन में खाना खाया करते थे। घी हम घर से कटोरी में ले जाते थे। ऐसे ही एक मौके पर हम खाना खा रहे थे और सामने वाली सीट खाली थी।

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रजनीश जी आए और बोले, बंधु में इस सीट पर बैठ जाऊं। मैंने खड़े होकर कहा, जी सर। वो बैठ गए, उनकी थाली आई जिसमें सूखी रोटी थी। मैंने घी उनकी तरफ सरकाते हुए कहा...सर ले लीजिए। उन्होंने मना करते हुए कहा बंधु घी खाने की नहीं पीने की चीज है। पहली मुलाकात में ही मैं समझ गया किसी जीनियस से बात कर रहा हूं। उनके बारे में बहुत ऐसी चीजें है जो शायद ही लोगों को मालूम हो। छात्र जीवन में वो साधु व्यक्ति थे। वह कभी साइकिल नहीं चलाते थे।

यह तो सभी ने देखा है कि किस तरह से एक साधारण व्यक्ति लेक्चरर से महात्मा बना। फिर आचार्य और उसके बाद ओशो। ओशो बनने के बाद भगवान बना। रजनीश में वो बात थी जो साधारण व्यक्ति में नहीं होती। उन्होंने एक बार कहा कि कभी भी गलत दिशा में कदम नहीं उठाएंगे। अगर ऐसे करते हैं तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि कोई भी इसके असर में आए बिना रह नहीं पाता था। उन्होंने अलग-अलग धर्म और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन देना शुरू किया।

शुरुआती दौर में उन्हें आचार्य रजनीश के तौर पर जाना जाता था। ओशो ने अपनी पढ़ाई जबलपुर में पूरी की और बाद में वो जबलपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के तौर पर काम करने लगे।  नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने नवसंन्यास आंदोलन की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया।

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