रेल लाइन पर मौत का तांडव
ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार को दो यात्री गाड़ियों व एक मालगाड़ी की भिड़ंत से हुए भीषण ट्रेन हादसे ने देश के अंतर्मन को गहरे तक आहत किया है। 21वीं सदी के विज्ञान के युग में सिग्नल की चूक से तकरीबन तीन सौ निर्दोष लोग मौत के मुंह में चले जाएं, इससे दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं हो सकता। एक हजार से अधिक लोग घायल हुए हैं और कुछ लोग दुर्घटना की त्रासदी से जीवनपर्यंत नहीं उबर पायेंगे। उच्चस्तरीय जांच की बात कही जा रही है, लेकिन इतना तो तय है कि यदि कहीं चूक हुई तो उसके मूल में लापरवाही है। यदि तोड़फोड़ की आशंका है तो हम क्यों रेलों का सुरक्षित संचालन सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं। अब सीबीआई जांच समेत कई तरह की घोषणाएं की जा रही हैं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि देश की बड़ी दुर्घटनाओं में शामिल इस हादसे के मूल में बड़ी मानवीय चूक है। सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि दोषियों को सख्त सजा दी जाएगी लेकिन रेल मंत्रालय का शीर्ष नेतृत्व क्या अपनी जवाबदेही से मुक्त हो सकता है? क्या राजनीतिक नेतृत्व में लाल बहादुर शास्त्री जैसी नैतिकता के अनुसरण का साहस नहीं होना चाहिए? सवाल यह भी है कि आजादी के सात दशक बाद भी देश के रेल नेटवर्क को हम उस कवच सिस्टम के तहत लाने में सक्षम नहीं हुए जो आमने-सामने की ट्रेनों की टक्कर रोकने में कारगर हो सकता है? ऐसे में देश में रेलों को हाईस्पीड बनाने का लक्ष्य कितना सुरक्षित रह पायेगा?
यह विडंबना है कि पटरी से उतरती ट्रेनों का यह सिलसिला दशकों से जारी है। हम पिछले हादसों से कोई सबक नहीं लेते हैं। बीते दशकों में राजनीतिक दलों में रेल मंत्रालय लेने की होड़ रहा करती थी ताकि उसके जरिये राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति की जा सके। पिछले दो बार से केंद्र में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली भाजपा से उम्मीद थी कि वह रेल के सफर को सुरक्षित बनाने के लिये कारगर उपाय करेगी। गाहे-बगाहे तेज गति की ट्रेन चलाने और निजीकरण को बढ़ावा देने की बात होती रही है। निश्चित रूप से नये प्रयोगों से केंद्रीय संचालन की कार्यप्रणाली पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। दरअसल, पूरे देश का रेल तंत्र सुनियोजित और सुरक्षित संचालन की मांग करता है। किसी तरह का विकेंद्रीयकरण इस मार्ग में विसंगतियां पैदा कर सकता है। सबसे पहली प्राथमिकता सुरक्षित रेल संचालन की होनी चाहिए। तभी ऐसी भीषण दुर्घटनाओं को टाला जा सकता है। दुर्घटना के बाद राहत-बचाव के बीच मुआवजा देने की घोषणाएं की जा रही हैं। लेकिन हमारी प्राथमिकता ऐसे रेल संचालन की होनी चाहिए कि उसमें दुर्घटना की कोई गुंजाइश न हो। दोषियों को ऐसी सख्त सजा दी जानी चाहिए कि वो नजीर बन सके। ताकि फिर कोई चूक सैकड़ों लोगों की जान न ले सके। सस्ती रेल सेवा के बजाय ऐसी फुलप्रूफ सुरक्षा होनी चाहिए कि तमाम यात्रियों के जीवन की रक्षा हो सके। निश्चित रूप से अब देश के रेलतंत्र को लापरवाही व गैरजिम्मेदारी की संस्कृति से मुक्त करने की जरूरत है।