अनुभूति के आखरों की खुलती सीपियां
रश्मि खरबंदा
लेखिका छाया त्यागी द्वारा रचित ‘सीपियां एहसास की’ उनकी चौथी काव्यकृति है। लेखिका साहित्य जगत में सक्रिय हैं और पिछले कुछ वर्षों में उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।
पुस्तक में 100 कविताएं संगृहीत हैं जिनमें कई ग़ज़ल के रूप में हैं। इनमें संसार के बदलते रुख की झलक दिखाई देती है। नैतिकता को घेरते धुंधलेपन और दो मुखी आचरण पर यह सटीक टीका है।
‘किस कदर करवट बदल ली अब ज़माने ने यहां, देखिए खुद पेड़ को, परछाई भी छलने लगी है।’...
‘बदला हुआ है वक्त अब वक्त ही नहीं है,बदले हैं आज आने-जाने के बहाने।’
जहां कवयित्री समाज का आईना प्रस्तुत करती हैं, वहीं उनकी रचनाएं उनके मन का आईना भी बनती हैं। मन में सीपियों की भांति गढ़े प्रीत के अहसासों को काव्य की लहरें उजागर करती हैं। इसके साथ कविताओं में अन्य रिश्तों, जैसे माता-पिता, सहेलियों, के स्नेह का भी वर्णन है। काव्य प्रेम की ज्योति से रोशन है।
कविताओं में एक आवर्ती विषय हैं- घर, घरौंदा और घर के हिस्से, जैसे खिड़की, दीवारें, और आंगन की तुलसी भी। इन चित्रों को कुशलतापूर्वक यादों के साथ पिरोया गया है। इन भावों में बचपन, सावन और युवावस्था के कई पल जीवंत हो उठते हैं। किताब में प्रकृति का भी सुंदर वर्णन है। शीर्षकनुमा सीपियों को अद्भुत प्रकार से कविताओं ‘बतियाती हैं सीपियां’ और ‘सीपियां खुल गई’ में दिल में हिलोरें लेती भावनाओं की अन्योक्ति का रूप दिया गया है।
‘गहरे भावों की कुछ सीपियां खुल गईं,
आखरों-आखरों सीढ़ियां खुल गईं।’
पुस्तक में विविध विषयों पर रचनाएं सम्मिलित हैं जो पाठकों में रोचकता उत्पन्न करेंगी, ऐसी उम्मीद है।
पुस्तक : सीपियां एहसास की लेखिका : छाया त्यागी प्रकाशक : सप्तऋषि प्रकाशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : 124 मूल्य : रु. 200.