आत्मविश्वास ही उबारेगा जीवन की उलझनों से
डॉ. मोनिका शर्मा
आप अपनी जिंदगी में जो भी बदलाव चाहती हो। किसी रिश्ते की उलझन से परेशान हो। बच्चों की कामयाबी के सपने मन को बेचैन बनाए हुए हैं। जीवनसाथी आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या से निजात पाने का रास्ता ढूंढ़ रही हो या फिर खुद को भय और चिंताओं के घेरे से निकाल सुकून पाने का मन है। जीवन के जिस पड़ाव पर भी हो, जैसी भी समस्या से जूझ रही हो, जिंदगी से जुड़ी ऐसी चाहतों को पूरा करने का जादू किसी के पास नहीं। तुम्हारे व्यक्तिगत जीवन की जरूरतों की दशा और दिशा बदलकर सब कुछ सहज-सुंदर बनाने का माद्दा कोई नहीं रखता। इसीलिए सामाजिक जीवन में फैला अजब-गजब अंधविश्वास का जाल हो या आभासी दुनिया में तैरते आदर्श वाक्य। पल-पल दिखते आध्यात्मिक वचनों वाले वीडियो हों या किसी इंसान द्वारा सुझाये उपाय। आस्था के नाम पर कोई भटकाव मत पालो। जीवन से जूझने और हर विपरीत परिस्थिति से जीतने का जज्बा तो तुम्हारे भीतर ही है। यह कभी नहीं भूलना कि अंतर्मन की चेतना पर विश्वास कर आगे बढ़ते रहने से बड़ा सूत्र कोई नहीं।
भावनात्मक दोहन से बचाव
आस्था के नाम पर सुध-बुध खो देने की स्थिति असल में भावनात्मक दोहन के अंतहीन सफर पर निकलने जैसा है। कभी देखा-देखी तो कभी श्रद्धा भाव के चलते, महिलाएं इस फेर में पड़ जाती हैं। यह सच है कि तकलीफदेह हालातों में सभी का मन कोई सहारा ढूंढता है। दुःख-दर्द में डूबा मन चमत्कार के नाम पर किसी शक्ति पर सहज ही विश्वास कर बैठता है। अव्यावहारिक-सी बातें भी दिल को तसल्ली देने लगती हैं। सच तो यह है कि यह भी एक छलावा ही है। इसीलिए अपने मनोभावों के इस बदलते पहलू को समझना आवश्यक है। किसी जादू की उम्मीद में अपने आप को ही भुला देने के इन हालातों में सचमुच संभलने की दरकार होती है। बहुत पीड़ादायी है कि सामाजिक परिवेश में विश्वास और आस्था के नाम पर बिछे इस जाल को समझने में अधिकतर महिलाएं बहुत देर कर देती हैं। जिसके चलते भावनात्मक शोषण का शिकार बनती हैं। दिशाहीनता का यह दंश जीवन को बहुत सी मनोवैज्ञानिक उलझनों के घेरे में ले आता है।
बेहतरी की बागडोर थामें
अपने जीवन को संवारने की राह खुद को ही तलाशनी होती है। उम्र के हर पड़ाव पर मन-जीवन की बेहतरी का मार्ग ढूंढ़ने की कोशिशें स्वयं ही करनी पड़ती हैं। अंतर्मन की चेतना पर विश्वास करना ही आगे बढ़ने, कुछ बेहतर करने की राह सुझाता है। किसी चमत्कारी शक्ति के बजाय आत्मविश्वास के साथ कदम बढ़ाने की सोच बल पाती है। व्यावहारिक बातों को समझकर हल ढूंढने की समझ को बल मिलता है। अपने आप का मूल्यांकन करने और अपनी गलतियों से सबक लेने की समझ पैदा होती है। अपनों को साथ लेकर चलने की परिस्थितियां बनती हैं। जीवन संवारने की इस यात्रा में मिले खट्टे-मीठे अनुभव भविष्य में सही निर्णय लेने की बुनियाद बनते हैं। सबसे अहम यह है कि अपने मन और अपनों के साथ से मिला यह सम्बल किसी भी हाल में कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। साथ ही प्रैक्टिकली जिंदगी के पहलुओं को समझकर आगे बढ़ना केवल और केवल बेहतरी की ओर लेकर जाता ही है। अध्ययन भी बताते हैं कि खुद पर विश्वास करना तो अपने आप में एक चमत्कार है। आत्मविश्वासी व्यक्तित्व और विचार अपने आप सकारात्मकता और सफलता को आकर्षित करने लगते हैं। मन की चाहतों के मुताबिक सब होने लगता है।
कर्मशील सोच को बल
असल में खुद पर भरोसा करते ही जीवन कर्मठता की राह पकड़ लेता है। इस परिस्थिति में किसी दृश्य-अदृश्य शक्ति से चमत्कार की आशा रखने के बजाय मेहनत और अनुशासन जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। यूं भी कर्मठ सोच के बल पर जीवन की दिशा बदलने वाले लोग कम नहीं। आसपास ही ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे। यह सार्थक व्यस्तता मन को ऊर्जा देती है। काम में व्यस्त रहने वाले लोगों को डिप्रेशन, अपराधबोध नहीं घेरते। स्पिरिचुअल संसार से लेकर साइंस की दुनिया तक, सब कहते हैं कि इमोशन्स को भी मैनेज करने की जरूरत होती है। सामाजिक-पारिवारिक सम्बन्धों से जुड़ी उलझनें हों या सेहत से जुड़ी परेशानियां। किसी बात पर मन का बिखरना हो या दिमाग को नाउम्मीदी का घेर लेना। सब कुछ चलता रहता है। इनसे बचने के व्यावहारिक उपाय जरूरी हैं। जैसे सपनों को पूरा करने को श्रम और सेहत की संभाल के लिए सक्रियता। कर्मशील रहते हुए ही जीवन से जुड़ी ऐसी बातों का प्रबंधन किया जा सकता है। मन को भटकाव से बचाया जा सकता है।