शुरुआती दो चरणों में मात्र 8 फीसदी महिला उम्मीदवार
नयी दिल्ली, 28 अप्रैल (एजेंसी)
लोकसभा चुनाव के शुरुआती दो चरणों के दौरान चुनावी मैदान में उतरे कुल 2823 उम्मीदवारों में से केवल आठ प्रतिशत महिलाएं थीं। राजनीतिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह आंकड़ा लैंगिक आधार पर पूर्वाग्रह की गंभीर समस्या को दर्शाता है और महिलाओं को सशक्त बनाने की बातें खोखली लगती हैं।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 135, जबकि दूसरे में 100 महिला उम्मीदवार थीं। पहले चरण में महिला उम्मीदवारों की संख्या के मामले में तमिलनाडु शीर्ष पर रहा। राज्य में पहले चरण में 76 महिला उम्मीदवार थीं, लेकिन राज्य के कुल उम्मीदवारों में उनकी हिस्सेदारी केवल आठ प्रतिशत थी। वहीं, दूसरे चरण में सबसे अधिक 24 महिला उम्मीदवार केरल से चुनावी मैदान में उतरीं। पार्टी-वार देखा जाए तो शुरुआती दो चरण में कांग्रेस ने 44 महिलाओं, जबकि भाजपा ने 69 महिलाओं को मैदान में उतारा।
इस लैंगिक असंतुलन की राजनीतिक विश्लेषकों और कार्यकर्ताओं ने आलोचना की। उनका सवाल है कि दल महिला आरक्षण विधेयक के लागू होने का इंतजार क्यों कर रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के जीसस एंड मैरी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुशीला रामास्वामी ने कहा कि राजनीतिक दलों को महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक दलों को अधिक अग्रसक्रिय होना चाहिए था और अधिक महिला उम्मीदवारों को खड़ा करना चाहिए था।’
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इफ्तिखार अहमद अंसारी ने कहा कि भारत के कुल मतदाताओं में लगभग आधी संख्या महिलाओं की है, ऐसे में उम्मीदवारों के रूप में उनका कम प्रतिनिधित्व राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की पूर्ण भागीदारी को रोकने वाली बाधाओं को लेकर सवाल खड़े करता है। उन्होंने प्रतीकात्मक कदम उठाने और वादे करने के बजाय राजनीति में महिलाओं के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की खातिर संरचनात्मक सुधारों के महत्व पर जोर दिया।
बीजद की पहल
बीजू जनता दल (बीजद) एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो महिला उम्मीदवारों को नीतिगत तौर पर 33 प्रतिशत टिकट देती है। बीजू महिला दल की राज्य इकाई की उपाध्यक्ष मीरा परिदा ने महिला सशक्तीकरण की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया और महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की अपनी पार्टी की पहल की सराहना की। उन्होंने व्यापक सुधारों की वकालत करते हुए कहा, ‘केवल सीट आरक्षित करना पर्याप्त नहीं है। हमें एक सांस्कृतिक बदलाव की जरूरत है, जिसमें महिलाओं को नेता और निर्णय लेने वालों के रूप में देखा जाए।’