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एकदा

07:21 AM Nov 27, 2024 IST

पटेल का ऋषिकर्म

अंग्रेज किसानों पर जुल्म और अत्याचार कर रहे थे। सरदार पटेल ने महसूस किया कि किसानों को शिक्षा प्रदान करना बहुत जरूरी है। उन्हीं दिनों पटेल ने किसानों के घर-घर का दौरा किया। उन्हें समझ आया कि जब तक किसानों के परिवारों को थोड़ी-बहुत शिक्षा नहीं दी जाएगी तब तक उन्हें सरलता से समझा पाना मुश्किल है। पटेल ने अपने कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर उन्हें शिक्षा की अहमियत बताई। एक दिन पटेल ने किसान के घर में खेल रही बालिका को बुलाया और उसे एक पुस्तक दिखाते हुए बोले, ‘बेटा जानती हो, यह किताब है। इसको पढ़ने से बच्चा समझदार हो जाता है।’ बात सुनकर बालिका तोतली भाषा में बोली, ‘पर किताब पढ़ाने के लिए कोई तो होना चाहिए। जैसे मां हर बात समझाती है, वैसे ही किताब कोई समझाएगा तो मैं भी पढ़ूंगी।’ बालिका की चतुराई भरी बातें सुनकर पटेल दंग रह गए। उन्होंने ठान लिया कि गुजरात में एक विद्यापीठ की स्थापना करनी होगी, जिससे बच्चों को कुछ पढ़ने-लिखने का अवसर प्राप्त होगा। इसके बाद उन्होंने विद्यापीठ की स्थापना के लिए चंदा जमा करना शुरू कर दिया। कार्यकर्ता भी पटेल के साथ तन-मन से चंदा जुटाने में लग गए। अपने इस काम को अंजाम देने के लिए वह बर्मा तक चंदा एकत्रित करने के लिए गए। उन्होंने मेहनत से लगभग बीस लाख रुपये चंदे के रूप में एकत्रित किए और विद्यापीठ की स्थापना की। प्रस्तुति : रेनू सैनी

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