एकदा
भगवान श्रीराम ने रावण, उसके पुत्रों और सेना का समूल संहार कर दिया। विभीषण ने श्रीराम से कहा, ‘रावण अपने अहंकार के सामने किसी को कुछ नहीं समझता था। आपने उस जैसे शक्तिशाली को पराजित कर दुर्लभ विजय प्राप्त की है।’ भगवान श्रीराम ने इस विजय को साधारण बताते हुए कहा, ‘हे सखे विभीषण! वास्तव में असली विजेता वह है, जो इस संसार रूपी शत्रु को जीत सके। विजय तो उन्हीं की होती है, जो धर्ममय रथ पर सवार होकर दुर्गुणों और दुर्व्यसनों पर विजय प्राप्त करते हैं। संसार के क्लेशों पर विजय प्राप्त करने वाले ही सच्चे विजेता माने जाते हैं। रावण अपने दुर्गुणों के कारण पराजित हुआ। दुराचारी को देर-सवेर नष्ट होना ही पड़ता है। केवल काठ के रथ पर आरूढ़ होकर अस्त्र-शस्त्रों के बल पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। असली विजय के लिए धर्ममय रथ चाहिए। शौर्य और धीरज इस धर्ममय रथ के पहिये होते हैं। विजय के लिए सबसे बड़ी शक्ति सत्य की चाहिए। शूरवीरता सत्याचरण से ही प्राप्त होती है। सत्य, दया, संयम, विवेक ऐसे सद्गुण हैं, जिन्हें धारण करने वाला सदैव अजेय रहा है। उसे कोई नहीं जीत सका है।’
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी