एकदा
रोम का सम्राट किसी बात पर अपने मंत्री से नाराज हो उठा। उसे लगा कि मंत्री भगवान को मुझसे बड़ा मानकर मेरा निरादर कर रहा है। राजा के मन में ईर्ष्या की भावना इतनी प्रबल हो उठी कि उसने निर्णय लिया कि जब मंत्री अपने परिवार के साथ अपना जन्मदिन मनाएगा, उसी दिन उसे फांसी दी जाएगी। मंत्री के जन्मदिवस पर भजन-संगीत और भोज का आयोजन था। तमाम रिश्तेदार और मित्र उपस्थित थे। तभी राजा के दूत ने एक लिखित आदेश मंत्री को थमा दिया। उसमें लिखा था, ‘आज शाम छह बजे मंत्री को फांसी दी जाएगी।’ यह आदेश पढ़ते ही मंत्री के कुटुंबी और मित्र हतप्रभ रह गए। किंतु मंत्री उठकर भगवान का स्मरण करते हुए नाचने लगा। दूत यह देखकर दंग रह गया। उसने राजा को बताया। राजा भी वहां पहुंचा। उसने मंत्री से पूछा, ‘क्या तुम्हें नहीं पता कि कुछ घंटे बाद तुम्हें फांसी पर लटका दिया जाएगा?’ मंत्री ने कहा, ‘राजन, मैं आपके प्रति कृतज्ञ हूं। मैं आज के दिन ही जन्मा था। आपकी कृपा से आज ही इस नश्वर शरीर को छोड़ प्रभु में विलीन हो जाऊंगा। आज तमाम रिश्तेदार-मित्र यहां मौजूद हैं। मेरी मृत्यु को आनंद महोत्सव में बदलकर आपने मुझ पर एक बड़ा अहसान किया है।’ राजा ने कहा, ‘तुमने तो मृत्यु को जीत लिया है। जिसे मृत्यु का भय नहीं सताए, वही तो जीवित है।’ राजा ने फांसी की सजा टाल दी।
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी