एकदा
एक बार एक नौजवान फौज में भर्ती होने से रह गया। अपनी तकदीर से नाराज और निराश होकर वापस लौटने लगा। रात को एक सराय में ठहरा। वहां का चौकीदार एक लंबी टहल के बाद आया और ड्योढ़ी में मिट्टी के तेल की डिबिया रोशन करते हुए उसे रात रुकने की जगह देने लगा। वह नौजवान उस गुलाबी रोशनी में देर तक यों ही अनमना बैठा रहा। तब तक चौकीदार ने उसको चटाई, बिछौना दे दिया। उस नौजवान की निराशा को चौकीदार ने भांप लिया था। खाने को दाल-रोटी देते हुए वह बोला, ‘चिराग रोशन है, खा लो। जब तक रोशनी है तब तक जो दिख रहा है, उसे देख लो।’ न जाने क्या हुआ कि उस नौजवान के दिमाग की बत्ती जल उठी। उसने उमंग से दाल-रोटी खाई। चिराग को एक बार फिर गौर से देखा। कोई बात नहीं, अब गांव लौटना है तो कोई और काम करना होगा। जब तक भुजाओं में दमखम है तब तक किसलिए घबराना। अब उस नौजवान की आंखों में निराशा के आंसू नहीं, एक बेहतरीन किसान बनने के सपने सज गये थे। प्रस्तुति : मुग्धा पांडे