एकदा
कामिल बुल्के बेल्जियम के ऐसे इलाके में रहते थे जहां फ्लेमिश भाषा भाषी लोग बसे थे, लेकिन उस दौरान बेल्जियम के कई हिस्सों में फ्रेंच का बोलबाला था। यहां तक कि शासक वर्ग भी फ्रेंच ही बोलते थे, ऐसे में अपनी भाषा और संस्कृति की अस्मिता के लिए कामिल बुल्के ने लड़ाइयां लड़ी थी। भारत पहुंचने पर उन्होंने यह पाया कि यहां के अधिकतम लोग अपनी बोली और भाषा को साधने के बजाय अंग्रेजी बोलने में अधिक गर्व महसूस करते हैं और अपनी ही परंपराओं से अंजान हैं। यहीं से उनका भारतीय भाषाओं से लगाव पनपने लगा और आगे चलकर उन्होंने हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय योगदान दिया। वैसे तो कामिल बुल्के बेल्जियम के रहने वाले थे लेकिन भारतीय भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के साधक भी थे। उनका कहना था कि रामचरित मानस केवल एक अद्भुत और अनूठी कृति ही नहीं है यह जीवन जीने का एक तरीका भी है। प्रस्तुति : मुग्धा पांडे