एकदा
सी.वी. रमन कलकत्ता विश्वविद्यालय में छात्रों के साथ प्रयोगशाला में काम कर रहे थे। अचानक एक छात्र ने गलती से एक महंगा उपकरण गिरा दिया। सभी छात्र डर गए और सन्नाटा छा गया। वे जानते थे कि यह उपकरण बहुत कीमती था और विदेश से मंगवाया गया था। उन्हें लगा कि प्रोफेसर रमन बहुत नाराज होंगे। लेकिन वे मुस्कुराए और बोले, ‘अरे वाह! यह तो बहुत अच्छा हुआ। अब हमें इसे खुद बनाने का मौका मिलेगा।’ छात्र हैरान थे। रमन ने समझाया, ‘देखो, हम अक्सर विदेशी उपकरणों पर निर्भर रहते हैं। लेकिन अब हमें अपने संसाधनों से इसे बनाने का अवसर मिला है। यह हमारे लिए एक चुनौती है और मुझे विश्वास है कि हम इससे बेहतर उपकरण बना सकते हैं।’ उस दिन से रमन और उनके छात्रों ने मिलकर उस उपकरण को फिर से बनाने का काम शुरू किया। कुछ महीनों के कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने न केवल उस उपकरण को बना लिया, बल्कि उसमें कुछ नए सुधार भी किए। इस अनुभव ने रमन और उनके छात्रों को स्वदेशी तकनीक विकसित करने की प्रेरणा दी। यह घटना रमन के वैज्ञानिक करिअर का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। उन्होंने बाद में कई मौलिक शोध किए, जिनमें प्रसिद्ध ‘रमन प्रभाव’ की खोज भी शामिल है, जिसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार