एकदा
विनोबा भावे एक बार एक गांव में घूम रहे थे। वहां उन्होंने देखा कि एक किसान अपने खेत में काम कर रहा था, जबकि उसका बेटा पेड़ के नीचे आराम फरमा रहा था। विनोबा जी ने उस युवक से पूछा, ‘बेटा, तुम अपने पिता की मदद क्यों नहीं कर रहे हो?’ युवक ने उत्तर दिया, ‘बाबा, मैं पढ़ा-लिखा हूं। मैंने कॉलेज की डिग्री हासिल की है। मैं इस काम को कैसे कर सकता हूं?’ विनोबा जी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘अच्छा, तो तुम शिक्षित हो। क्या तुम मुझे बता सकते हो कि इस पेड़ की जड़ें कहां हैं?’ युवक ने कहा, ‘बाबा, जड़ें तो जमीन के अंदर होती हैं।’ ‘और इसकी शाखाएं?’ युवक ने उत्तर दिया, ‘वे तो ऊपर आकाश की ओर फैली हुई हैं।’ विनोबा जी ने कहा, ‘बेटा, तुम्हारी शिक्षा अधूरी है। असली ज्ञान वह है जो हमें जमीन से जोड़े और साथ ही आकाश की ओर ले जाए। जैसे यह पेड़ अपनी जड़ों से धरती से जुड़ा है और शाखाओं से आकाश को छूता है, वैसे ही हमें भी होना चाहिए। अपने माता-पिता और समाज की सेवा करते हुए हमें अपने ज्ञान और कौशल का विकास करना चाहिए।’ युवक को अपनी गलती का अहसास हुआ।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार