एकदा
एक दिन अन्याय और गुलामी से व्यथित होकर बिपिन चंद्र पाल ने अपना गांव छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने चुपचाप अपना सामान बांधा और रात के अंधेरे में घर से निकल पड़े। उन्हें नहीं पता था कि वे कहां जा रहे हैं, वे बस चलते रहे। सुबह होने पर वे एक नदी के किनारे पहुंचे। वहां उन्होंने एक बूढ़े साधु को देखा जो दीपक जलाकर बैठे थे। उन्होंने पूछा, ‘महात्मा, आप इस रोशनी में दीपक क्यों जला रहे हैं?’ साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘बेटा, यह दीपक मुझे याद दिलाता है कि अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, एक छोटी-सी लौ उसे भेद सकती है।’ इस बात ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने साधु से पूछा, ‘तो क्या मैं भी इस देश का अंधकार दूर कर सकता हूं?’ साधु ने कहा, ‘जरूर! लेकिन याद रखना, दीपक जलाए रखने के लिए धैर्य और दृढ़ता की आवश्यकता होती है।’ इस घटना ने उनके जीवन को एक नई दिशा दी और वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए। उन्होंने अपने लेखन और भाषणों के माध्यम से लोगों को जाग्रत करने का काम किया।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार