एकदा
धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाइयों से अक्सर कहा करते थे कि अपने को बड़ा मानने के भ्रम और अहंकार के कारण मानव का पतन अवश्य होता है। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ वन जा रहे थे। वन में उन्हें जहां कहीं मुनियों का आश्रम दिखाई देता, ये सिर झुकाकर प्रणाम करते। वन में चलते-चलते उन्हें देवी का मंदिर दिखाई दिया। उन्होंने रुककर देवी की स्तुति की। झुककर सिर नवाया। भीम के मन में उस दिन न जाने कैसे दूषित भाव उत्पन्न हो गए। भीम ने कहा, ‘तुम एक स्त्री की पूजा क्यों करते हो?’ धर्मराज ने कहा, ‘देवी महामाया हैं, आदिशक्ति हैं। देवी की कृपा के बिना कभी किसी का उद्धार नहीं हो सकता।’ भीम चुप हो गए। कुछ दूर आगे बढ़े थे कि उन्हें चक्कर आने लगा। भीम ने कहा, ‘मेरी आंखों के आगे अंधकार छा गया है। कुछ दिखाई नहीं दे रहा।’ युधिष्ठिर ने कहा, ‘देवी की प्रार्थना करो, तभी तुम ठीक हो सकते हो।’ अचानक देवी प्रकट हो गई। वे बोलीं, ‘मैं इस कारण आई हूं कि तुम सब जिन श्रीकृष्ण के भक्त हो, मैं भी उनकी आराधना करती हूं। धर्मात्मा व्यक्ति के मन में प्रत्येक स्त्री के प्रति श्रद्धा भावना रहनी चाहिए। स्त्री को हीन मानना अधर्म है।’ भीम ने अहंकार त्यागकर देवी को झुककर प्रणाम किया।
प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी