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एकदा

08:14 AM Jul 13, 2024 IST
एकदा
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इंसान का ऋण भार

झुककर दोहरी हो गयी कमर को कुछ सीधा करता हुआ बुढ़ापा बुरी तरह से छटपटाया । तभी अचानक मृत्यु ने प्रत्यक्ष होकर पूछा, ‘हमारा मिलन तो अटल है, फिर तू मेरी नजरों से बच नहीं सकता! तुझे मेरे साथ चलना ही होगा।’ बुढ़ापे ने बिलखकर कहा, ‘न तो मैं तुझसे डरता हूं और न तुम्हारे आने से भयभीत हूं, मैं तो तुम्हारे आदर-सत्कार के लिए कब से पलकें बिछाये बैठा हूं। मेरे झुकने का उद्देश्य तेरी नजरों से बचने का कदापि नहीं है। मेरी कमर तो झुक रही है संसार से लिये हुए अपार ऋण भार से। मुझे हमेशा यह ध्यान रहता है कि संसार से मैंने जितना लिया उसका एक अंश भी नहीं चुका पाया! अतः कमर ऋण से और गर्दन ग्लानि से झुकी रहती है।’ प्रस्तुति : पुष्पेश कुमार पुष्प

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