एकदा
फिरंगी शासन के विरुद्ध स्वामी श्रद्धानंद ने देशभक्तों का नेतृत्व किया। इस आंदोलन में पुलिस व फौज की गोलियों ने जिन देशभक्तों को शहीद व घायल किया, उनमें हिंदू भी थे और मुस्लिम भी। इसके बाद हिंदू-मुस्लिम का भेद मिटाकर शहीदों की अंतिम यात्रा निकाली गई, जिसमें स्वामी श्रद्धानंद और हकीम अजमल खां भी शामिल थे। दोपहर के बाद जामा मस्जिद में नमाज के बाद मुस्लिमों का जलसा हो रहा था। उसके बाद मुस्लिम नेताओं ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद की तकरीर भी होनी चाहिए। कालांतर में जनसमूह ने इसका समर्थन किया। दो-तीन जोशीले मुस्लिम युवा नये बाजार से स्वामी जी को ले आए। अल्लाह हो अकबर के नारों के बीच स्वामी जी मस्जिद की प्राचीर पर आरूढ़ हुए। स्वामी जी ने ऋग्वेद के एक मंत्र के साथ अपना व्याख्यान आरंभ किया और ओम शांति-शांति के साथ समाप्त किया। यह जामा मस्जिद के इतिहास में पहली घटना थी कि वेद मंत्रों से वातावरण गुंजायमान हुआ।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा