एकदा
एक बार अपनी पदयात्रा के दौरान गौतम बुद्ध एक जंगल में कुछ देर ठहरे। उनके कुछ शिष्य साथ थे। वे भी हरी घास पर लेट गये। शीतल हवा चल रही थी और मीठी झपकी अनंत सुख प्रदान कर रही थी। अचानक कुछ खचर-खचर की आवाज सुनाई दी। एक युवक जमीन पर गिरे पत्ते तथा टहनी जमा कर रहा था। पर्याप्त होने के बाद उसने यह काम बंद किया और गौतम बुद्ध के नजदीक जाकर उनको प्रणाम किया। गौतम बुद्ध ने पूछा कि तुमने बस इन दो ही पेड़ों की कुछ पत्ती और टहनी जमा की। तो वह बोला, ‘तथागत यह पेड़ अनोखे हैं इसकी पत्ती को चबा लो तो न भूख लगती है न प्यास। मेरे आज के लिए तो इतनी ही काफी हैं।’ प्रणाम कर वह जंगल से गांव की तरफ चला गया। उसके चले जाने के बाद उत्सुक शिष्य पूछने लगे, ‘तथागत उस साधारण युवक से आप कितनी घनिष्ठता के साथ वार्तालाप कर रहे थे। आखिर क्यों?’ बुद्ध ने कहा कि तुमने देखा वह अहिंसक है और संतोषी भी। उसने बस वही पत्ती तथा टहनी उठाई जो पेड़ ने त्याग दी। उनके अलावा एक बार भी वृक्ष को हाथ नहीं लगाया। उसकी यही साधना मेरे मन को छू गयी। मानव क्या है, यह महत्वपूर्ण नहीं; परंतु उसकी नीयत कैसी है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। प्रस्तुति : मुग्धा पांडे