एकदा
काम और आराम का संतुलन
अमेरिका के प्रेसिडेंट काल्विन कूलिज कभी भी परेशानी, घबराहट और जल्दी में नहीं रहते थे। वे काम से कितने ही क्यों न घिरे होते, दिनभर में कुछ क्षण आराम के लिए निकाल ही लेते थे। वे कहा करते कि, ‘जिंदगी के लिए घबराहट में कदापि न रहें, वह अपनी देखभाल खुद कर सकती है।’ एक दिन काल्विन कूलिज अपने ऑफिस में बैठे कोई जरूरी काम निपटा रहे थे कि एकाएक उनकी तबीयत थोड़ा आराम करने की हुई। यह विचार मन में आते ही वे अपनी आरामकुर्सी पर लेट गए। लेटते ही उन्हें नींद आ गई। बड़े-बड़े लोग प्रेसिडेंट से मिलने के लिए बाहर खड़े इंतजार कर रहे थे, यह देखकर प्रेसिडेंट का नया सेक्रेटरी घबरा रहा था। वह चाह कर भी प्रेसिडेंट को नींद से जगाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। थोड़ी देर बाद जब प्रेसिडेंट की आंख खुली तो उन्होंने सेक्रेटरी को घबराया हुआ पाया। उन्होंने सचिव का लटका हुआ चेहरा देखा तो पूछा, ‘क्यों भाई, अमेरिका अपनी जगह पर तो है न?’ मेरा ख्याल है, आपने अपने काम के क्षणों में कभी आराम करके जीवन में तरोताजा होना नहीं सीखा। माना कि काम की अहमियत बहुत ज्यादा है पर आराम की घड़ियों को कम करके नहीं आंका जा सकता।’
प्रस्तुति : राजकिशन नैन