एकदा
नील की खेती के शोषण से त्रस्त हो रहे चंपारण के किसानों से मिलने पहली बार बिहार के चंपारण जिले में जाते हुए गांधी जी की ट्रेन आधी रात को मुज़फ़्फ़रपुर पहुंची। उनके स्वागत में लालटेन लेकर आए आचार्य कृपलानी उन्हें खोज-खोज कर थक गये पर उन्हें ढूंढ़ नहीं पाए क्योंकि महात्मा गांधी तीसरे दर्जे में सफ़र कर रहे थे। चंपारण आते ही अंग्रेजों ने गांधी को जगह छोड़ देने का फ़रमान सुनाया। मगर गांधीजी ने कहा, ‘मैं इस आदेश का पालन इसलिए नहीं कर रहा कि मेरे अंदर क़ानून के लिए सम्मान नहीं है बल्कि इसलिए कि मैं अपने अन्तःकरण की आवाज़ को उस पर कहीं अधिक तरजीह देता हूं।’ अंतत: सरकार को नील किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए एक जांच कमेटी बनानी पड़ी। महात्मा गांधी को उसका सदस्य बनाया गया। कमेटी ने एक मत से नील खेती अनुबंध को समाप्त करने की और किसानों के खेत मुक्त करने की सिफ़ारिश की। सारी दुनिया के अखबार इस खबर से पट गये। ये भारत की धरती पर सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग था। प्रस्तुति : पूनम पांडे