एकदा
जॉर्ज इवानोविच गुरजिएफ एक रूसी दार्शनिक और आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने अपने आश्रम के द्वार पर एक तख्ती लटका रखी थी, जिस पर लिखा था-जिन्हें अपने माता-पिता के साथ रहने में दिक्कत है, वह इस आश्रम में प्रवेश न करे। एक व्यक्ति आश्रम में प्रवेश की इस शर्त की तािर्ककता से असंतुष्ट था। उसने गुरजिएफ से पूछा, ‘महोदय, माता-पिता की सेवा करना तो एक सामाजिक व्यवस्था है। इससे आपका क्या लेना-देना। जिसे सेवा करनी होगी वह करेगा, जिसे नहीं करनी होगी, वह नहीं करेगा। लोग आपके पास अपने पारिवारिक पचड़ों को लेकर नहीं बल्कि ईश्वर को जानने आते हैं।’ गुरजिएफ ने कहा, ‘बस उसी ईश्वर की यह शर्त है कि जो लोग अपने माता-पिता के साथ नहीं रह सकते, वह परमपिता परमेश्वर के साथ भी नहीं रह सकते, क्योंकि माता-पिता ईश्वर के प्रतिनिधि होते हैं। भगवान ने तुम्हें इन्हीं के माध्यम से इस संसार में भेजा है।’ उस व्यक्ति ने समझ लिया कि अपने जन्मदाता को सम्मान देने से ही प्रभु कृपा मिलती है। प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा